Monday, December 31, 2012

जोश के साथ होश


जोश के साथ होश 


पूरा देश आज दामिनी के बलात्कारियों को फांसी देने या उनका लिंग काटकर उन्हें नपुंसक बना देने की बात कर रहा है।
दामिनी से हुई बलात्कार की इस घिनौनी दुर्घटना ने पूरे देश को झिंझोड़ कर रख दिया है।आज महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ , उनके साथ होने वाले बलात्कार  के खिलाफ एवं उनके साथ हो रहे अन्य  घरेलु या सामाजिक ज़ुल्मों के खिलाफ , एक बहुत ही ज़ोरदार एवम असरदार वातावरण बन गया है।वातावरण के असर की  गम्भीरता केवल इसी बात से लगाईं जा सकती है कि इस पीड़ित लड़की के अन्तिम  संस्कार पर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी एवम देश के प्रधान मन्त्री श्री मनमोहन सिंह जी को भी स्वयं शामिल होना पडा।यह सब देश के  नौजवान बच्चों के ज़बरदस्त आन्दोलन का ही जहूरा है कि आज इन सब स्वार्थी नेताओं को मगरमच्छी आंसू बहाने को  मजबूर होना पडा।आज हालत यह है कि सारे देशवासी एक सुर में ऐसे जालिमों के खिलाफ सख्त से सख्त कानून बनाए जाने की मांग कर रहे हैं।और तो और सख्त से सख्त क़ानून बनाने के लिए पार्लियामेंट का विशेष सत्र बुलाये जाने तक की मांग बी .जे .प़ी  . की सदन में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने कर डाली।यह बात अलग है कि ढोंगी कांग्रेसी नेताओं ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया।

आज के हालात को देखते हुए एक बात तो तय है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए उन पर अत्याचार करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त क़ानून बनाये जाने की बहुत अधिक आवश्यकता है और उससे भी अधिक ,उन बनाए गए सख्त क़ानूनों  को बिना कोई ढिलाई किये जल्द से जल्द लागू करने की भी उतनी ही अधिक आवश्यकता है,ताकि ज़ुल्मिओं के मन में क़ानून का कुछ तो भय हो।

पर एक पक्ष और भी है जो यह कहता है कि हमारे देश में ह्त्या के जुर्म के खिलाफ बहुत सख्त क़ानून है।हत्यारों को फांसी की सज़ा दिए जाने का क़ानून मौजूद होते हुए भी रोज़ दिन हत्याएं होती रहती हैं और खून खराबे का बाज़ार गर्म रहता है।अपराधी लोग लालचवश हत्याएं करते हैं और बाकी लोग ज़मीन के झगड़ों को लेकर , पैसों के लेन -देन को लेकर,औरतों के साथ हुई बद्सलूक को लेकर या फिर किसी और कारण से क्रोध में आकर ह्त्या कर बैठते हैं।इस प्रकार की हत्याओं के समाचार रोज़-दिन सुनने में आते ही रहते हैं।ह्त्या करते समय, फांसी का भय किसी को नहीं डराता, कोई नहीं सोचता कि ह्त्या करना कानूनन बहुत घोर अपराध है और इसके लिए मुझे फांसी भी हो सकती है।बल्कि जिन के पास धन-दौलत या ऊंचे ओहदों की ताकत है वो तो किसी क़ानून से  डरते ही नहीं । या तो  उन लोगों को कोई पकड़ता नहीं और अगर कहीं किसी ख़ास वज़ह से कोई पकड़ा भी जाए तो अदालतों में मामले इतने लम्बे खिंचते  हैं कि न्याय की कमर ही टूट जाती है।लेकिन इस बीच में क़ानून के रखवालों की जेबें खूब गर्म होती हैं।

जब हत्याओं के मामलों में क़ानून की तलवार सिर्फ गरीब पर ही अपना असर दिखा पाती है तो क्या गारण्टी  है कि महिलाओं के मामलों में सख्त से सख्त क़ानून की तलवार हर गरीब या अमीर पर अपना बराबर का असर दिखायेगी।

देश का हर इन्साफ पसन्द नागरिक महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा का जीवन जीते हुए देखना चाहता है और उन पर अत्याचार करने वालों को जल्द से जल्द ,सख्त से सख्त सज़ा भी देना चाहता है लेकिन हर सजग आदमी इस बात से ज्यादा चिन्तित है कि कहीं महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने किसी सख्त क़ानून की तलवार किसी निर्दोष या गरीब आदमी का गला ना  काट दे।

जहां महिलाओं पर रोज़ अत्याचार हो रहे हैं वहीं कई बार ऐसे समाचार भी मिलते हैं कि किसी आदमी को फंसाने के लिए उसके खिलाफ झूठ-मूठ का 
मामला बनाने के लिए किसी औरत से बलात्कार आदि की झूठी रिपोर्ट लिखवा दी जाती है।ऐसे में वह निर्दोष शरीफ आदमी बहुत बुरी तरह से फँस जाता है।

अभी पिछले दिनों टी वी पर एक सच्ची घटना का विवरण आया था जिसमें  बताया गया था कि एक बदकार औरत ने एक दुराचारी पुलिस अधिकारी के  साथ सांठ - गाँठ करके तीन सज्जन व्यक्तिओं  पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाकर समाज के उन तीन सज्जन और निर्दोष व्यक्तिओं को फंसा दिया।बड़ी मुश्किल से बिना किसी दोष के सज़ा भुगत रहे उन निर्दोषों को न्याय मिल पाया।

सोच कर ही दिल काँप उठता है कि यदि ऐसे में फांसी या लिंग काट देने की सख्त सजा होती तो उन बेचारे तीन निर्दोषों का क्या होता ?


इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि जहां बलात्कारीओं को बिना किसी दया के सख्त से सख्त सज़ा देने की आवश्यकता है वहीं इस बात की भी बहुत अधिक ज़रुरत है कि ऐसे किसी क़ानून का कोई भ्रष्ट पुलिस अधिकारी या अन्य क़ानून का रखवाला नाजायज़ इस्तमाल ना करने पाए ।

जोश में होश बनाए रखना बहुत ज़रूरी है।







Sunday, December 23, 2012

वाह री मेरी भोली सरकार

पिछले सप्ताह देश की राजधानी दिल्ली में ,देर शाम को , एक चलती बस में , एक युवती के साथ बड़ी  निर्ममता के साथ ,सामूहिक बलात्कार की घटना घटित हुइ।युवती एवम उसके साथी मित्र को बहुत ही वहशियाना तरीके से इतना अधिक मारा-पीटा गया कि दोनों को इलाज के लिए हस्पताल में भर्ती कराना पडा।लड़की की हालत बहुत नाज़ुक है।अब क्योंकि मामला बहुत अधिक तूल  पकड़ चुका है ,इसलिए डाक्टर भी जी-जान से उसे बचाने की कोशिश में लगे हैं।डाक्टरों का कहना यह है कि उन्होंने अपने जीवन में ,इतनी बेरहमी से मारी-पीटी गई ,बलात्कार की शिकार ,कोई भी लड़की या औरत कभी भी नहीं देखी।लड़की की हालत देख कर डाक्टरों का  भी कलेजा काँप उठा है।

ऐसे घिनौने समाचार अखबारों में प्रतिदिन पढने को मिलते हैं।समाज के चरित्र का इतना अधिक पतन हो गया है कि 2-2, 3-3 साल की नन्हीं बच्चियों तक के साथ यह दुराचार हो रहे हैं।बहुत से मामलों में दुराचारियों ने बच्चियों के साथ दुष्कर्म करके उनकी ह्त्या भी कर दी।पिछले दिनों एक युवक ने अपनी दादी की आयु की 80 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला के साथ मुँह काला किया और फिर उसे डरा -धमका कर पीट कर भाग गया।

ऐसे अपराध रोज़ हो रहे हैं,क्योंकि ज़्यादातर मामलों में अपराधी अपने पैसे और अपने रसूख के दम पर पकडे नहीं जाते और पीड़ित महिला और उसके परिवार वालों को पुलिसवाले डरा - धमका कर चुप करा देते हैं,क्योंकि पुलिस वालों की जेबें भर दी गई होती हैं।नतीजतन अपराधी समाज में बेधड़क एवम और अधिक बेशर्मी से घुमते नज़र आते हैं।कहीं-कहीं जहाँ पर अपराधी छोटे-मोटे लोग होते हैं ,जिनके पास कोई ताकत नहीं होती उन्हें पुलिस गिरफ्तार भी कर लेती है, किन्तु वहाँ भी मामले अदालतों में 
बरसों घिसटते रहते है और पीड़ित बरसों तक न्याय की आस लगाते-लगाते आखिर थक जाते हैं,और न्याय की उम्मीद छोड़ कर  चुप होकर 
बैठ जाते हैं।

बलात्कार के मामलों में एक और बड़ी दुखदाई हालत पैदा हो जाती है।समाज में बलात्कार की शिकार महिला समाज की सहानुभूति पाने के स्थान पर हमेशा असामाजिक तत्वों की वहशी निगाहों की शिकार बन कर रह जाती है।शायद ही कोई उस की मदद करने की हिम्मत जुटा पाता  हो।
उलटा होता ये है कि पीड़ित महिला और उसका परिवार जीवनभर इस दर्द 
को झेलने को मजबूर हो जाते हैं।पीड़ित लड़की को स्कूल /कालेज से निकाल दिया जाता है और पीड़ित  महिलाओं को बिना किसी कसूर अपनी नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया जाता है।

हालात से बदतर होते जा रहे हैं और ऐय्याश ऐय्याशियाँ करते सीना ताने घूम रहे हैं ,क्योंकि पुलिस वालों की जेबें गर्म हो रही हैं।चारों तरफ बदमाशों और  पुलिस के गठजोड़ का बोल-बाला है।इस गठजोड़ को ख़त्म किये जाने की ज़रुरत है।हालात ऐसे पैदा किये जाने की ज़रुरत है कि पीड़ित महिला चाहे ग़रीब हो चाहे अमीर ,अपने साथ हुए अत्याचार के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने के लिए बेधड़क पुलिस स्टेशन का रुख कर सके।
हालात ऐसे पैदा किये जाने चाहियें कि पीड़ित महिला के मन में विश्वास होना चाहिए कि पुलिस थाने में उस पर भोंडी फब्तियां नहीं कसी  जायेंगी 
बल्कि उसे न्याय दिलाने के लिए उसकी शिकायत पूरी सहानुभूति के साथ  
सुनी जायेगी , उसके ज़ख्मों पर मलहम लगाने का प्रयत्न होगा ना कि नमक छिड़कने का।

आज समाज में शायद कुछ चेतना जागी  है।बिना किसी स्वार्थी राजनितिक दल या किसी सामाजिक संगठन के बुलाये हज़ारों की संक्षा में 
नौजवान युवक-युवतियाँ बलात्कारिओं के विरुद्ध अपना रोष प्रकट करने के लिए इण्डिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन के निकट विजय चौक तक इकट्ठा हुए हैं।22 तारीख को सुबह 9 बजे से लेकर देर रात तक प्रचण्ड रोष प्रदर्शन होता रहा, लेकिन देश के कानून के रखवालों को यह प्रदर्शन हज़म नहीं हुआ।देश की युवा शक्ति की मानसिकता का सम्मान करने के स्थान पर मेरी भोली सरकार के चमचों ने इन जोशीले युवक-युवतीओं के सात्विक विचारों को कुचलने के लिए उन पर ठन्डे पानी की बौछार मारी।यही नहीं इन बच्चों को प्रदर्शन स्थल से खदेड़ने के लिए पुलिस के दरिंदों ने उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े और उन पर बड़ी निर्ममता से लाठियां भी बरसाईं।

लेकिन कमाल की हिम्मत है इन जवानों  की।भयंकर ठण्ड में ठन्डे पानी की मार , आंसू गैस के गोले और लाठियों की मार को झेलते हुए अपनी बात को सरकार के बहरे कानों तक पहुंचाने के लिए प्रदर्शन स्थल पर डटे रहे।

युवकों की मांगें गलत नहीं हैं।बलात्कार की पीड़ित महिलाओं को बिना देर किये न्याय मिलना चाहिए।जघन्य अपराध के मामले में अपराधियों को फांसी की सज़ा होनी चाहिए।

देश में न्याय व्यवस्था कायम करवाने के लिए लड़ाई लड़ रहे इन बहादुर और जोशीले क्रांतिवीरों को मेरा शत-शत प्रणाम।

इन क्रांतिवीरों पर किये गए सारे अत्याचारों के लिए मैं 72 साल का वरिष्ट नागरिक इन वीरों से सारे देश की ओर से क्षमा माँगता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इनके इस ओजस्वी रोष प्रदर्शन से इस बहरी - अन्धी सरकार को होश आएगा और बलात्कार की पीड़ित महिलाओं को न्याय मिलेगा।

आप क्या सोचते हैं ? अवश्य बताएं।
धन्यवाद।






Monday, December 10, 2012

औरंगजेब जिंदाबाद

   

 मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने अपने समय में हिन्दू तीर्थ यात्रियों पर जजिया कर लगाया था , जिसको याद करते हुए हिन्दू आज भी उसे कोसते हुए नहीं थकते .

  किन्तु आज जो हिन्दू बहुसंक्षक भारत देश की सिक्यूलर कही जाने वाली 
केन्द्रीय  सरकार हिन्दु तीर्थ यात्रिओं पर नए-नए  सरचार्ज लगा रही है वह औरंगजेब के जज़िया से किसी भी तरह कम नहीं .

 नए सरचार्ज के बारे में बात करने से पहले कुछ जानकारी सभी विद्वान् पाठकों को देना चाहता हूँ .

  समस्त विश्व में बस रहे हिन्दू जनमानस के ह्रदय में कुम्भ महापर्व का बहुत अधिक महत्त्व है। इस महापर्व के उपलक्ष पर लाखों श्रद्धालू कुम्भ स्थल पर पहुँचते हैं और स्नान आदि कर अपने को धन्य मानते हैं।

   कुम्भ महापर्व भारतवर्ष में जनमानस का सबसे बड़ा समागम है,जो हजारों वर्षों से देश-विदेश के हिन्दुओं को अपनी ओर लाखों की संक्षा में खींचता आ रहा है। 
   कालचक्र में सूर्य , चंद्रमा  एवम  बृहस्पति का विशेष महत्वपूर्ण स्थान है।इन तीनों ग्रहों का विशेष योग ही कुम्भ महापर्व का विशेष आधार है।
 नासिक , हरिद्वार , उज्जैन व  प्रयागराज  - इन तीर्थों में से किसी एक पर , हर बारह वर्ष के पश्चात सूर्य , चन्द्रमा व  बृहस्पति के  विशेष स्थिति में 
आने पर या यूं कहें कि बारह वर्ष के बाद जब ये त्तीनों गृह अपनी ख़ास स्थिति में आ जाते हैं तब कुम्भ महापर्व उपरोक्त चारों तीर्थों में से किसी एक में घटित होता है।

   माघ मास  की अमावस्या को जब सूर्य व चंद्रमा मकर राशि पर एवम बृहस्पति वृष पर स्थित हों तब तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद )में कुम्भ महापर्व का योग बनता है।

    विक्रमी सम्वत 2069 में 10 फरवरी 2013,रविवार के दिन माघ मास की 
अमावस ( जिसे मौनी अमावस भी कहते हैं ) को सूर्य व  चंद्रमा मकर राशि पर इक्कट्ठे होंगे व  बृहस्पति वृष राशि में होंगे।अतः इस योग में प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन होगा।यह आयोजन (मकर सक्रांति यानी 14 जनवरी 2013 से लेकर माघ पूर्णिमा ,25 फरवरी 2013 तक चलेगा। यह आयोजन प्रयागराज में बारह वर्षों के बाद होने वाला है।

      बाकी के तीनों तीर्थों में इन ग्रहों की किस विशेष स्थिति में कुम्भ महापर्व का आयोजन होता है वह कभी फिर बता पाऊँगा अभी इतना ही काफी है।

       
 उपरोक्त  विवरण पढ़कर सभी सुबुद्ध पाठक कुम्भ महापर्व का महत्त्व समझ गए होंगे।वैसे तो अधिकतर सभी लोग कुम्भ के बारे में थोड़ा-बहुत 
जानते ही हैं, परन्तु जो नहीं जानते उनकी सूचना  के लिए मैंने यह लघु विवरण देना उचित समझा।

    जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि इस महापर्व पर लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं बल्कि पिछले कुछ कुम्भ पर्वों का अनुभव तो यह बताता है कि अब हज़ारों की संक्षा में अमरीकी व योरप के दुसरे धर्मों के लोग भी इस पर्व पर यात्रियों के रूप में आते हैं। 

     अतः देश के हर कोने से यात्रियों को कुम्भ् स्थल तक ले जाने के लिए रेलवे विशेष ट्रेन चलाती है।

      अगर गहराई से विचार किया जाए तो हम पाएंगे कि लाखों लोगों के इस एक महीने से भी अधिक समय के दौरान यात्रियों के आवागमन से देश में आर्थिक-विकास के बहुत आयाम खुलते हैं।

       इतना अधिक महत्वपूर्ण पर्व होने के बावजूद भी हिन्दू बहुसंक्षक भारत देश की सेकुलर कहलाने में गर्व महसूस करने वाली सरकार 1 जनवरी 2013 से कुम्भ यात्रियों के किराए  भाड़े पर 5 रूपये  से 20 रूपये तक का सरचार्ज अतिरिक्त रूप से लेगी।

       बिना किसी द्वेषभाव के यहाँ यह और सूचना देना चाहूंगा कि सेकुलरिज्म के नाम पर हमारी यही सरकार हज यात्रा पर जाने वाले हमारे मुस्लिम भाइयों को हज यात्रा के किराये भाड़े में भारी रियायत देती है।

      यह कैसा सेकुलरिज्म है जहां बहुसंक्षक हिन्दू अपने ही देश में तीर्थ यात्रा पर जाने पर सरचार्ज देने पर विवश है।

       किसी ने ठीक कहा है कि एक नपुंसक (गलत शब्द के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ) की तरह हिन्दू की सहन शक्ति की भी कोई सीमा नहीं।भगवान् इन्हें सदबुद्धि  दें।


      इस विवरण को पढ़कर आप की क्या राय है ? मैं अवश्य जानना चाहूँगा।
       
     (  आजकल अपने को प्रगतिवादी कहलाने में गर्व महसूस करने वाले लोगों में हिन्दू के प्रति उपेक्षा का भाव रखना एक फैशन सा  हो गया है )

       इन्हीं शब्दों के साथ भारत सरकार के इस कृत्य की निन्दा व इसका विरोध करते हुए मैं अपने विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ और सभी पाठकों से निवेदन करना चाहता हूँ कि इस दुष्कृत्य का विरोध करते हुए सब लोग इस विवरण को अपने मित्रों के पास भी अग्रसित करें।

Monday, November 12, 2012

शरणार्थी

शरणार्थी 

कल 13 नवम्बर दिन मंगलवार को ज्योतिपर्व दीपावली है। 
" दीपावली की आप सब को बहुत-बहुत बधाई "
आज प्रातःकाल मेरे एक मित्र ने मुझे फोन पर दीपावली की बधाई दी, साथ ही उसने मुझे एक विशेष दीपावली मिलन के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण भी दिया।

मित्र क्योंकि एक ज़िम्मेदार और गम्भीर व्यक्ति हैं,अतः उनके निमंत्रण की गरिमा को समझते हुए मैंने समयानुसार दोपहर 12 बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना स्वीकार कर लिया। कार्यक्रम पश्चिमी दिल्ली के भरथल गाँव में स्थित 'दादा मोटा मंदिर' में होना था। सूचनार्थ बता दूं कि भरथल गाँव बिजवासन के बिलकुल निकट ही है।

कार्यक्रम में पहुँच कर जो कुछ भी देखा, सुना और समझा वो किसी भी भारतीय के लिए बहुत दुखदायी है।

मंदिर के प्रांगण में हवन की बहुत सुन्दर व्यवस्था थी ,हवन कुण्ड के एक ओर मंच बनाया गया था जिसके पास गाँव के कुछ लोग बैठे थे और हवन कुण्ड के दूसरी ओर तकरीबन डेढ़ सौ स्त्री-पुरुष हर उम्र के बच्चों के साथ बैठे थे।बच्चे हर फिक्र से दूर आपस में खेलते हुए आनन्द मग्न थे।

मेरे मित्र महोदय इन्तजाम की देखरेख में लगे थे,मुझे पहुंचा देख बहुत खुश हुए और उन्होंने मुझे पूरे कार्यक्रम की पूरी जानकारी दी।उन्होंने मुझे सब लोगों से मिलवाया भी।

परिचय की प्रक्रिया धीरे-धीरे एक भयावह परिस्थिति की जानकारी का रूप लेने लगी।हवन कुण्ड के दूसरी ओर बैठे डेढ़ सौ स्त्री-पुरुष  पाकिस्तान से भाग कर आये हुए हिन्दू शरणार्थी थे।उनके चेहरों पर लिखी बेचारगी उनकी सारी व्यथा बयान कर रही थी।

यह हवन इन्हीं किस्मत के मारों के लिए आयोजित किया गया था।

ठीक एक बजे हवन शुरू किया गया।हवन का मुख्य जिजमान भी इन्हीं शरणार्थी भाईओं में से एक दम्पत्ति को बनाया गया था।

जब वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ हवन प्रारम्भ हुआ तो उन सब के 
चेहरे  खुशियों से चमक उठे।दो-चार बुजुर्गों को छोड़ कर बाकी सब के लिए वैदिक मन्त्रोच्चार और हवन आदि का कार्यक्रम एकदम एक नयी चीज़ थी,जिसके बारे में वो सब जानते तो थे परन्तु कभी इस तरह खुल कर ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाए थे।वहाँ पकिस्तान में उन्हें हवन आदि करने की तो बात ही छोडो,दिवाली-होली जैसे त्यौहार तक मनाने की आज्ञा नहीं है।

हिन्दु वहाँ बहुत डर कर सहमे हुए रहते हैं।हिन्दू औरतें गली-मोहल्ले में या बाज़ार में अकेली नहीं जा सकतीं,उनकी लड़कियों को स्कूल-कालेज में दाखिला नहीं मिल सकता,उन लोगों को खेतों में किये काम की मेहनत  मजदूरी तक पूरी नहीं मिलती फिर भी वह लोग बंधुआ मजदूरों की तरह काम करने को मजबूर हैं वरना उनकी बहु-बेटिओं को घर से उठा लिए जाने का डर बना रहता है।यानी हिन्दू वहाँ दुसरे दर्जे के नागरिक बन कर रह गए हैं।सरकार और पुलिस से भी उन्हें वहाँ कोई सुरक्षा की उम्मीद नहीं रह गयी।

जब पाकिस्तान बना था तब वहाँ हिन्दुओं की संक्षा कोई साढे सैंतीस लाख थी जो आज घट कर सिर्फ और सिर्फ दो लाख और सैंतीस हज़ार रह गई है।उन के साथ होने वाली ज्यादतियों की ओर से वहाँ की सरकार जानबूझ कर मुंह मोडे रहती है।

नतीजा यह है कि आधे से ज़्यादा हिन्दू अपनी बहु-बेटियों की इज्ज़त बचाने के लिए अपना धर्म बदल कर मजबूरन मुसलमान बन कर वहाँ रह रहे हैं।जो बचे हैं वो पालायन करने को मजबूर हैं।

और शर्मनाक बात यह है कि हमारी सरकार इन सब हक़ीक़तों को अच्छी तरह से जानती है लेकिन उसमें इतना भी दम नहीं कि वोह इन बातों के खिलाफ कहीं भी कोई आवाज़ उठा सके । 
कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि जब किसी तरह अपनी इज्ज़त बचाने के लिए यह लोग पिछले साल किसी तरह दिल्ली पहुँचने में कामयाब हो गए तो हमारी सरकार ने इन पर रहम दिखाने की बजाय इन के साथ मुजरिमों जैसा व्यवहार किया।यहाँ की सरकार ने पाकिस्तान की सरकार को खुश करने के लिए इन लोगों को तुरंत यहाँ से निष्कासित करने की आज्ञा जारी कर दी।

ना जाने कैसे इनकी बदहाली की खबर दैनिक जागरण अखबार वालों को लग गयी।दैनिक जागरण ने इनकी दुर्गति की पूरी कहानी अपने अखबार में छापी।दैनिक जागरण की रिपोर्ट के बावजूद ना तो किसी अखबार ने और ना ही टी वी के किसी भी चैनल ने इस बारे में कुछ कहा।

खैर दैनिक जागरण की रिपोर्ट ने सच में हिन्दुओं को झकझोरा और बहुत से भारतीय हिन्दू भाई मजबूरी में शरणार्थी बने अपने पाकिस्तानी हिन्दू भाईओं की मदद के लिए खड़े हो गए।

किसी ने बहुत सही कहा है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी जब प्रभु किसी की मदद करना चाहते  हैं तो किसी ना किसी को मददगार बना कर खडा कर देते हैं।

इनके साथ भी ऐसा ही हुआ,काफी संगठन और उनके प्रतिनिधियों ने इनकी हर प्रकार से मदद करने की कोशिशें की।

जिन सब लोगों ने इनकी मदद की उन सब के नाम और उन्होंने इन दुखी भाईओं की कैसे-कैसे मदद की अगर यह सब विस्तार से लिखने बैठ गया तो लेख बहुत लम्बा हो जाएगा इसलिए बाकी सब हिम्मती और निस्वार्थ सेवा करने वाले भाईओं का ज़िक्र आगे के लेख के लिए छोड़ते हुए आज केवल यही बताना चाहूँगा कि भरथल गाँव के श्री नाहर सिंह जी इन सब डेढ़ सौ हिन्दू भाई-बहनों को अपने साथ अपने गाँव के अपने घर में ले आये  और पूरे एक वर्ष से अपने घर में पूरे सम्मान के साथ रखे हुए हैं।ऐसे निस्वार्थ सेवाव्रती को मेरा शत-शत नमन।
उत्तरप्रदेश के छोटे से कसबे होडल के युवा अध्यापक श्री जय प्रकाश जी भी श्री नाहर सिंह जी के साथ जुड़ गए और उन्होंने घर-घर जाकर 80 क्विंटल राशन इकट्ठा किया।

यही नहीं इन लोगों ने इन दुखियारे लोगों की लड़ाई भारत के सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचाई।


सुप्रीमकोर्ट से राहत ये मिली कि यदि कोई इन सब शरणार्थियों को गोद लेने को तैयार हो तो उसकी ज़िम्मेदारी पर इन सब को भारत में रहने की इजाज़त दे दी जाए।

श्री नाहर सिंह और श्री जय प्रकाश और उनके कुछ साथियों ने मिलकर इस  बारे में सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और अब ये लोग भरथल गाँव में रह रहे हैं।इन में से कुछ लोग फरीदाबाद भी शिफ्ट हो गए हैं क्योंकि सुना  है कि एक और जत्था पाकिस्तान से यहाँ आने वाला है।

इन भाईओं के जवान लोग फल और सब्जी बेच कर अपना गुज़ारा कर रहे हैं।आगे-आगे धीरे-धीरे ये लोग तरक्की कर सकेंगे,ऐसी मुझे उम्मीद है।

हमारी सरकार हिन्दुओं के बारे में इतनी उदासीन क्यों है?

क्या यही भारत का सिक्युलारिज्म है कि नाजायज़ तरीके से बंगलादेश से घुस आये नौ लाख मुसलमान हमारे सर आँखों पर और पाकिस्तान से आये पीड़ित हिन्दुओं को लात ?

सोचने का विषय है।






















Thursday, July 12, 2012

श्री दारा सिंह मेरे जवानी के हीरो

श्री दारा सिंह मेरे जवानी के हीरो

मैं और मेरे जैसे अन्य ,हज़ारों क्या ,लाखों नवयुवक 60-70 के दशक में श्री दारा सिंह के अनन्य दीवाने हुआ करते थे .

आज प्रातःकाल उनके निधन का दुखद समाचार टी . वी .से मिला .वास्तव में बहुत दुःख हुआ .वैसे तो पिछले कुछ दिनों से उनका स्वास्थ्य गिरने लगा था , परन्तु 7 जौलाई को जो वो हस्पताल गए तो जीवन में पहली बार लड़ाई हार कर लौटे . ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे .

मुझे बचपन से अखाड़े  में जाकर व्यायाम करने का और सबको कुश्ती लड़ते देखने का बहुत शौक था .
मैं खुद कुश्ती लड़ने से हमेशा  कतराता था . केवल कुश्ती देखने भर के लिए दूर-दूर मित्रों के साथ कहीं भी पहुँच जाता था .कभी महरोली और कभी जामामस्जिद दंगल के उमंग भरे माहौल का आनंद लेने के लिए हम लोग सब अखाड़ों के चक्कर लगाया  करते थे .

दारासिंह जी उन दिनों हर छोटे-बड़े देशवासी के दिल की धड़कन होते थे .
फिल्मों में मुमताज़ के साथ उनकी जोड़ी खूब जमती थी .निशि के साथ भी उनकी फिल्में बहुत बढ़िया बनी थीं .
लोग उनके नाम से फिल्में देखने जाते थे  ,क्योंकि उनकी फिल्मों  में एक से एक कुश्ती के नज़ारे देखने को मिलते थे .उनकी मशहूरी और लोकप्रियता को देखते हुए बहुत से पहेलवान फिल्म इंडस्ट्री में खिंचे हुए आ गए थे ,लेकिन उनकी जैसी बुलंदियों को कोई भी न छू सका .

उन दिनों ग्रीको-रोमन स्टाइल की कुश्तिओं  की बड़ी धूम थी .अखबारों में दारा  सिंह जी के विदेशी पहलवानों 
के साथ कुश्तियों के चर्चे बहुत छपते थे . और हम लोग उनकी जीत  के चर्चे बहुत चाव से पढ़ा और सुना  करते थे .
दारा सिंह जी को घमंड तो छू भी नहीं गया था ,लोग उनके पास कुश्तियों में रेफरी बनने की प्रार्थना लेकर पहुँच जाते और वो बिना कोई नखरा दिखाए हर स्थान पर आने को राज़ी हो जाते .
सुबह उनके देहान्त की खबर सुनकर एक बहुत पुरानी बात याद आ गई , लिखना वही चाहता था लेकिन और सब बातें भी लिखने बैठ गया .
60 के दशक की बात है .
भारत केसरी खिताब का फाइनल दंगल था .खिताबी दंगल बड़ा नामी था और आल-इंडिया लेवल का था .
कुश्ती मास्टर चन्दगी राम और उस समय के मशहूर पहलवान श्री मेहरुद्दीन के बीच होनी थी .
चन्दगीराम जी श्री मेहरुद्दीन के मुकाबले एकदम नए पहेलवान थे .असल में वो स्कूल में ड्राइंग के टीचर थे .
कोई भी श्री चन्दगी राम जी को महत्त्व नहीं दे रहा था .
हर कोई समझ रहा  था कि  श्री मेहरुद्दीन श्री चन्दगीराम को मिनटों में चित्त कर देंगे .लेकिन  कुश्ती क्योंकि भारत केसरी खिताब के फाइनल की थी ,इसलिए कुश्ती के शौकीन दूर -दूर से दिल्ली के दिल्ली गेट स्टेडियम में इकट्ठे हो रहे थे .
इन सब बातों से ऊपर इस कुश्ती के रेफरी श्री दारा सिंह जी रहने वाले थे.
कुश्ती के साथ-साथ दारा सिंह जी को देखने की इच्छा सब के मन में बहुत प्रबल थी .
चारों तरफ यह खबर आग की तरह फ़ैल चुकि थी कि  इस कुश्ती में श्री दारा सिंह जी रेफरी रहने वाले हैं .
मुझे याद है दिल्ली गेट स्टेडियम के बाहर इतनी ज़्यादा भीड़ इक्कट्ठा हो गई थी कि भीड़ को काबू में रखने के लिए पुलिस के घुड़सवार दस्ते को बुलवाया गया था .फिर भी भीड़ थी कि उमड़ी ही पड़ रही थी .

 अचानक भीड़ में एक बहुत बड़ी हलचल होने लगी .

सब तरफ दारासिंह जी का नाम गूंजने लगा .दारा सिंह जी आ गए थे .

भीड़ बेकाबू होने लगी 

पुलिस को दारा सिंह जी को स्टेडियम के दरवाज़े तक पहुंचाने में बड़ी मुश्किल हो रही थी .

पुलिस की मुश्किल को भांप कर , दारा सिंह जी , जो स्टेडियम की दीवार के पास भीड़ में फंसे हुए खड़े थे ,एकाएक एक स्टंट मैन की तरह कूदे और एक छलांग में ही स्टेडियम की 8 फ़ुट ऊंची दीवार के ऊपरी सिरे को  अपने दोनों हाथों से थाम कर एक जिमनास्ट की तरह अपने बदन को ऊपर उठा कर दिवार पर जा चढ़े .
यह सब इतनी तेज़ी से हुआ कि पुलिस वाले भी दंग  रह गए .

अचानक दारा सिंह जी को दिवार पर खड़े हुए भीड़ की तरफ मुस्कुराते हुए हाथ हिलाते देखकर पूरी भीड़ में हर्ष की लहर दौड़ गई .

अचानक दारा सिंह जी घूमे और स्टेडियम के अन्दर कूद गए .

दारा सिंह जी का यह एक्शन पूरी भीड़ को आत्मविभोर कर गया .


 बाद में जिस खूबसूरती से कुश्ती में दारा सिंह जी ने रेफरी की भूमिका निभाई ,कुश्ती प्रेमिओं को उनकी वह भूमिका सदा याद रहेगी .

मास्टर चन्दगी राम जी ने जिस खूबी और आसानी से श्री मेहरुद्दीन को पटकी दी थी वह भी एक यादगार ही रहेगी .

मैं कभी भी किसी एक्टर या नेता से प्रभावित नहीं हुआ हूँ , लेकिन दारा सिंह जी बचपन से ही मेरे हीरो रहे हैं और हमेशा रहेंगे .

यह देश इतने अच्छे इंसान की कमी हमेशा महसूस करता रहेगा .

आप क्या सोचते हैं ? अपने अमूल्य विचारों से अवगत अवश्य कराएं।धन्यवाद।




Sunday, January 29, 2012

तोता-मैना की कहानी

तोता - मैना की कहानी 


   एक दिन एक विद्वान व्यक्ति एक जंगल के रास्ते से होकर अपने किसी काम से जा रहा था , चलते-चलते थकावट के कारण वह व्यक्ति एक घने वृक्ष की छांह में आराम करने के लिए बैठ गया .अचानक उसे पेड़ की एक डाल पर बैठे आपस में बातें करते तोता-मैना  की एक जोड़ी दिखाई दी .दोनों आपस में जो बातें कर रहे थे उन्हें सुन कर वह व्यक्ति  बड़ी सोच में पड़ गया .असल में वह विद्वान् व्यक्ति पक्षियों की भाषा समझता था .
  तोता-मैना की जिन  बातों को सुनकर  वह विद्वान  व्यक्ति सोच में पड़ गया था वह आप भी सुनिए और फैसला करिए की उस विद्वान का चिंता में पड़ जाना कितना सही था .
  ( तोता-मैना की बातें उनके वार्तालाप के ही रूप में प्रस्तुत हैं .)  
 मैना - क्या बात है तोते राजा , बड़े उदास नज़र आ रहे हो ?
 तोता - असल में मैं बहुत दुखी हूँ , आस्ट्रेलिया में हमारी टीम आखरी मैच  
            भी हार  गई .  
 मैना - इसमें दुखी होने की क्या बात है , कई बार सिरीज़ के सारे मैच जीते 
             भी तो हैं .
  तोता -हाँ लेकिन इस बार की हार दिग्गज खिलाड़ियों की लापरवाही  की 
            वजह से हुई है , जो बहुत गलत बात है .
   मैना -ऐसा क्यों ?
   तोता -बताते हैं कि कुछ सीनियर खिलाड़ी कैप्टन का कहना नहीं मानते   
            और जान-बूझकर उसकी सलाह के विरुद्ध जाते हैं . इस                                   
           अनुशासनहीनता का पूरी टीम के खेल प्रदर्शन पर बुरा प्रभाव पड़ता 
           है .
  मैना -तुम्हारा मतलब यह हुआ कि टीम में नेतृत्व संकट है .
  तोता -हाँ यही लगता है , हालांकि वर्तमान कैप्टेन में कोई कमी नहीं
            नज़र आती , बस सिनिअर खिलाड़ियों कि अकड़ और ईगो के 
            कारण सारी परेशानी पैदा हो रही है .
  मैना -तो क्या हल सोचा ?
  तोता -शायद कैप्टेन बदलेंगे 
  मैना -उससे क्या होगा , थोड़े दिन के बाद उसके खिलाफ भी बगावत शुरू  
           हो  जायेगी . ये कोई पक्का इन्तजाम नहीं है टीम में अनुशासन
           बनाए रखने का .
  तोता -तो तू क्या कहती है , क्या करना चाहिए पक्का अनुशासन कायम 
            रखने के लिए ?
 मैना -मैं तो कहती हूँ राहुल गांधी को कैप्टेन बना देना चाहिए .सब ठीक हो 
          जाएगा .
 तोता -क्या बकवास करती है , क्रिकेट का राहुल गांधी से क्या सम्बन्ध .
           कहाँ राम-राम , कहाँ टें-टें . वो तो लोगों की देखा-देखी कभी-कभी 
           बस मैच देखने पहुँच जाता है .
  मैना -अरे तो उसे राजनीति की कौनसी समझ है , पर देख लो सारे के सारे 
          केबिनेट मिनिस्टर तक जो एक इमानदार और काबिल प्रधान मंत्री             
          की रत्ती भर भी परवाह नहीं करते और खुलेआम अनुशासनहीनता 
          का प्रदर्शन करते फिरते हैं कैसे राहुल गांधी के एक इशारे पर सीधे 
          हो जाते हैं .
 तोता -पर वो बिचारा भी कब तक संभालेगा , जब वो बड़ा हो जाएगा तब 
           कौन संभालेगा ?
  मैना -तू उसकी चिंता छोड़ दे .जब तक राहुल बड़ा होगा तब तक उसका 
         बेटा खडा हो जाएगा . रौब उसका भी उतना ही रहेगा आखिर वो भी तो 
         उसी खानदान का रोशन-चिराग होगा .


   तोता -  तेरी बात बिलकुल सही है , यही है पक्का और इकलौता इन्तजाम                                                                 
              मैं अभी शरद पंवारजी  के पास जाता हूँ और उन्हें तेरी सलाह से        
              सहमत कराता हूँ .
                          और तोता उड़ गया - विद्वान के भी तोते उड़ा गया 
           
            

Tuesday, January 17, 2012

भ्रष्टाचार और उसकी सुविधायें

भ्रष्टाचार और उसकी सुविधायें 


आज के समय में भ्रष्टाचार के विरुद्ध बातें करना , ड्राइंग-रूम में बैठ कर इस बारे में लम्बी-लम्बी बहस करना आम फैशन हो गया है .
पहले स्वामी रामदेव जी और फिर उनकी बनाई ज़मीन पर अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो आन्दोलन चलाया उसने देश के जन -मानस पर बहुत बड़ा असर डाला है .
आज का युग क्योंकि भ्रष्टाचार पर बातें करते हुए टाइम पास करने का युग है ,तो मुझे भी इस बारे में एक काफी पुरानी बात याद आ रही है जो मैं सब के साथ शेयर करना चाहूंगा .   
जिन दिनों का ज़िक्र करने जा रहा हूँ उन दिनों हम लोग जनक पुरी में रहा करते थे .
जैसे फैमिली डॉक्टर होता है , जिसके पास घर के सब छोटे बड़े हर बिमारी के इलाज के लिए भागते हैं ,वैसे ही लोग अपना नाई,धोबी और ओप्टीशियन  भी एक फिक्स रखते हैं .
हमारे परिवार के सभी सदस्यों के चश्में भी उन दिनों एक ही  ओपटीशियन  से बनवाये जाते  थे . अब क्योंकि ईश्वर की कृपा से घर में चश्मा लगाने वाले  सदस्यों की संख्या भी ठीक-ठाक ही थी  , तो किसी ना किसी के चश्में के चक्कर में महीने-पंद्रह दिन में  ओपटीशियन महोदय के पास जाना ही पड़ता था .
हमारे जो ओपटीशियन महोदय थे  उनका पुत्र जिसका नाम राकेश था बड़ी मेहनत करके या यूं  कहो कि काफी तिकड़म भिडाने के बाद अमेरिका में रहने के लिए ग्रीन कार्ड हासिल करने में कामयाब हो गया था  . 
एक बार जब मैं अपने पिता जी का चश्मा  बनवाने उनकी दुकान पर गया तो बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी मिठाई का डिब्बा उन्होंने मेरे सामने कर दिया . ख़ुशी की वज़ह पूछने पर उन्होंने बड़े लम्बे-चौड़े अन्दाज़ में मुझे सारा सिलसिला समझाने की कोशिश की . जो कुछ उन्होंने मुझे समझाया उसका निचोड़ ये था कि  :-
   -- उनका काबिल बेटा अमेरिका में सेटल होने जा रहा था , क्योंकि ,
   -- हिन्दोस्तान एक निहायत ही घटिया , गन्दा और चोर-उचक्के रिश्वत-खोरों का देश था जहां लोग पिछले जन्मों का फल भुगतने के लिए पैदा होते थे .
  -- इसलिए ये समझदार , ईमानदार और मेहनती लोगों के लिए किसी नरक से कम नहीं था .
  -- लिहाजा हर समझदार , ईमानदार और मेहनती आदमी को यहाँ अपनी जिंदगी बर्बाद करने कि बजाय विदेश में जाकर अपनी किस्मत सवांरने की कोशिश करनी चाहिए .
खैर , बिना उनकी बातों का कोई प्रतिवाद किये , मैंने एक लड्डू लिया और अपने रस्ते लगा .
पिछले दो साल  से चश्में वगैरह  के काम के लिए मेरा बेटा ही जाता रहा था, मेरा जाना हो ही नहीं पाया था , अभी कुछ महीने  पहले की बात है कि मैं किसी काम से उस तरफ गया हुआ था .अचानक हमारे ओपटीशियन महोदय , जो अपनी दूकान के बाहर ही खड़े थे , मुझे देख कर पुकार उठे , ''वाह भाई साहब ,आज तो बहुत दिन बाद चक्कर लगा ,आइये , तशरीफ़ लाइए .''
और मुझे मजबूरन उनके पीछे-पीछे तशरीफ़ हाथ में लेकर उनकी दुकान में 
 जाना पडा .
दुकान में घुसते ही सबसे पहले मेरी नज़र उनके सुपुत्र राकेश पर पड़ी .राकेश को वहाँ देखकर मैंने समझा कि शायद अपने माता-पिता व अपने दूसरे रिश्तेदारों से मिलने के लिए कुछ दिनों के लिए अमेरिका से इधर आया होगा . 
फिर भी सरसरी तौर पर मैंने पूछ ही लिया , '' कहो भाई राकेश , कैसे हो और तुम्हारे अमेरिका के क्या हाल-चाल हैं ? ''
'' सब ठीक ही है अंकल जी , वैसे मैं अब यहीं पापा के साथ ही काम कर रहा हूँ  ''.
मैं बहुत हैरान हुआ और मैंने उत्सुकता-वश पूछ लिया , '' ये यहाँ कैसे , ये तो अमेरिका में इतनी मुश्किल से ग्रीन कार्ड हासिल कर पाया था और ग्रीन कार्ड लेकर वहीं बसने  वाला था ?''
 '' ओ मिटटी पाओ जी अमरीका ते , नाल उनांदे ग्रीन कार्ड ते , ऐ हुन ऐत्थे  ही रहेगा .''  ओपटीशियन महोदय अचानक झुंजला से गए . 
 '' लेकिन हुआ क्या , जो इसे धरती का स्वर्ग अमेरिका छोड़ कर यहाँ नरक में वापिस आना पडा ?'' मैंने हँसते हुए पूछा .
'' ओ छड्डो भाई साहब , ओ वी कोई मुल्क है , ज़रा-ज़रा जई गल ते बन्दे नू चुक के अन्दर कर देंदे ने , न किसे दा कोई लिहाज ना कोई रियायत , ज़रा गलती होई ताँ मुसीबत ही मुसीबत '' .   
'' हाँ ये बात तो है , अमेरिका और योरप के मुल्कों में कानून बड़े सख्त हैं और उनकी पाबंदी भी बड़ी सख्ती से की जाती है '' .मैंने अपना ज्ञान बघारते हुए कहा .
'' ओ भाई साहब , क़ानून ते इत्थे साडे देश विच वी हैगा पर इत्थे साडे देश विच बन्दे-बन्दे विच फर्क रखने दी सब नू तमीज है , इक्को लाठी नाल हर किसे नू नईं हांकन लगदे ''. 
'' क्या मतलब ? मैं कुछ समझा नहीं '' .
'' मतलब साफ़ है जी , इत्थे बन्दे कोलों कोई उंच-नीच हो वी जावे ताँ कुछ दे-दवा के बच ते जांदा है , उत्थे ते कोई लिहाज ही नहीं . कोई हत्थ ही नहीं रक्खन देंदा ''. 
'' पर ये तो गलत बात है , अगर किसी ने अपराध किया है और वो पैसे दे कर साफ़ बच जाता है तो यह तो भ्रष्टाचार हुआ जो समाज और देश के लिए बहुत हानिकारक है ''. मैंने अपनी आपत्ति जताई .
'' ओ की गल्ल  करदे हो भाई साहब , इत्थे साडे देश विच इक्को ए ही ताँ मौज है भाँवे कतल वी कर दयो , जे त्वाडे पल्ले चार पैसे हैगे ने ताँ त्वानू फिकर करने दी कोई लोड़ नईं , पैसे खवाओ तो साफ़ बरी हो जाओ ''.  वो बड़े शायराना अंदाज़ में बोले .
अब मेरे से और सुनना मुश्किल था इसलिए मैंने जल्दी से उन्हें नमस्कार किया और कोई ज़रूरी काम याद आ गया जतला कर वहाँ से रुखसत हुआ .  
     मैं आज सोचता हूँ कि ये ओपटीशियन महोदय वाली मानसिकता जो आज हम सभी के दिमाग में कहीं ना कहीं कम या ज़्यादा गहरी  बैठी हुई है , क्या हमें भ्रष्टाचार के दलदल से कभी उबरने भी देगी ?








   











     

Sunday, January 15, 2012

मकर सक्रान्ति

मकर सक्रान्ति 
    
   आप सब को मकर सक्रान्ति कि बहुत-बहुत बधाई हो .
   जब सूर्य  का मकर राशि के साथ संक्रमण होता है तो मकर सक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है .
    पर्व क्यों मनाया जाता है ?
   क्योंकि सूर्य जब  मकर राशि में प्रवेश करता है तो वह पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध से निकल कर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के निकट आना शुरू कर देता है और क्योंकि पृथ्वी का सारा जन-जीवन सूर्य पर निर्भर करता है इसलिए उसका उत्तरी गोलार्ध के निकट आना अधिक शुभ माना जाता है इसीलिए हम इस घटना का स्वागत एक पर्व कि तरह मनाते हुए करते हैं .
    इस घटना को हम उत्तरायण के नाम से भी जानते हैं .  
   बोलचाल की भाषा में कहें तो जिस दिन  सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है  उस दिन मकर सक्रान्ति होती है .
    वैसे तो सभी जानते हैं कि सूर्य अपने स्थान पर स्थिर है और हमारे ब्रह्माण्ड के सारे गृह-नक्षत्र उसके चारों ओर निरन्तर घूमते रहते हैं . 
   परन्तु अपनी सुविधा के लिए हम उल्टा बोलते हैं .
   हम कहते हैं कि सूर्य इस राशि में या सूर्य उस गृह में आ गया है .
   कुल बारह राशियाँ मानी गयी हैं ,और सूर्य बारी-बारी से प्रत्येक राशि में एक महीना रहता है .
   इस प्रकार एक वर्ष में हमारे ब्रह्माण्ड की एक परिक्रमा या एक चक्कर पूरा होता है .
   यानी ठीक एक वर्ष बाद बाकी की सारी राशियों का चक्कर लगाकर सूर्य वापिस मकर राशि में आ जाता है .  
  ये आम आदमी की आम सोच है और इसी आम सोच की वज़ह से हम सब अपने दिमाग में यह बात जमाये बैठे हैं कि मकर सक्रान्ति या यों कहें कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हर वर्ष 14 जनवरी को होता है .
   इसमें आम आदमी का कोई दोष भी नहीं है ,क्योंकि सन 1936 से लेकर सन 2008 तक मकर सक्रान्ति 14 जनवरी को ही पड़ रही थी .
   जब 72 साल तक हम मकर सक्रान्ति का पर्व 14 जनवरी को मनाते रहे हैं तो अचानक  कैसे मान लें कि अब यह पर्व 14 जनवरी को नहीं ,बल्कि 15 जनवरी को मनाना चाहिए .
   इसके लिए हमें खगोल शास्त्र कि जानकारी लेनी पड़ेगी .
    मैं ज्यादा गहराई में ना जाकर केवल मकर राशि का सूर्य के चारों ओर घूमने का जो समय है , उसी की बात करूंगा .
    मकर राशि का एक चक्कर ठीक एक वर्ष में पूरा नहीं हो पाता , बल्कि ये चक्कर एक वर्ष से बीस मिनट अधिक में पूरा होता है .
    यानि 72 वर्ष बीतते-बीतते इस  चक्कर में 1440 मिनट या 24 घन्टे और जुड़ जाते हैं और इस प्रकार 72 वर्ष बाद मकर सक्रान्ति एक दिन आगे बढ़ जाती है .यही कारण है कि जो मकर सक्रान्ति का पर्व सन 1936 से लेकर सन 2008 तक हर वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता था वह अब 15 जनवरी को ही मनाया जाना चाहिए क्योंकि अब सूर्य का मकर राशि में संक्रमण 14 जनवरी को नहीं 15 जनवरी को होता है .
    ( समय का ये हेर-फेर क्यों होता है अगर मैं यह समझाने  बैठ गया तो मामला कुछ ज़्यादा ही लम्बा हो जाएगा और हम असली विषय से भटक जायेंगे .)
      मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि हमें लकीर का फ़कीर नहीं बने रहना चाहिए और इस पर्व को जोकि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है , अंधविश्वास में नहीं बदल देना चाहिए , बल्कि इसकी महान वैज्ञानिकता को समझते हुए मनाना चाहिए .
      इस प्रकार सन 2o80 तक मकर सक्रान्ति का पर्व 15 जनवरी को मनाकर फिर 2080से सन 2152  तक यह पर्व 15 जनवरी की जगह 16 जनवरी को ही मनाया जाएगा .
       मेरा पूरा विशवास है कि सब इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझते हुए आने वाले सालों में अपने जीवन काल में इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे .
      अगर पढ़ कर अच्छा लगा हो तो सबको बताएं और मुझे अपने अमूल्य विचारों से भी अवगत करायें .
       धन्यवाद .