Sunday, April 27, 2014

                                                                                    ॐ 

चिकना घड़ा कैसा हो  ?

श्रीमती सोनिया का दामाद और उनकी पुत्री श्रीमती प्रियंका का पति यानी देश के परम शक्तिशाली घराने का दामाद राबर्ट वाड्रा कितना सौभाग्यशाली है ये हम सब अच्छी तरह से जानते हैं।
इस भारत देश की मानसिकता को देखते हुए हम बड़े आराम से कह सकते हैं कि इस देश में सुन्दर राजकुमारी की हैसियत रखने वाली अनन्य सुंदरी से उसका विवाह हुआ ,इस से बढ़कर सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है ?
और फिर उस घराने के सामने जिस आदमी के घराने  की और उसकी अपनी औकात कौड़ियों की ना हो उसकी शादी वहाँ हुई तो ये तो फिल्मों में दिखाई जाने वाली रईस की बेटी और उसके बंगले के माली के बेटे के बीच हुए सफल प्रेम सम्बन्ध से किसी तरह भी कम कहानी नहीं।

अब ये एक साधारण सी बात है कि ये  नया रिश्ता इस गरीब नौजवान के लिए कारूँ  के खजाने की ओर ले जाने वाली  राह से कम  कभी भी नहीं था।

जो होना था वही हुआ , मौका परस्तों और चापलूसों  ने शाही घराने की मेहरबानियों और कृपा दृष्टियों को अपने ऊपर बनाये रखने के लिए इस गरीबी से निकल कर पैसे की चकाचौंध में आये नौजवान की पैसे की लालसा को तुरंत ताड़ लिया।

नतीजा सब के सामने है हजारों एकड़ ज़मीन दामाद श्री को कौड़ियों के दाम मिली जिसे बेचकर दामाद जी ने रातोंरात सैंकड़ों करोड़ रूपये कमा लिए।

ये सारा घटना क्रम जब घटित हो रहा था तब क्या श्रीमती सोनिया  , राहुल गांधी और श्रीमती प्रियंका इन सब काला बाज़ारियों से बेखबर थे ,ये पूछना भी एक अहमकता भरा सवाल होगा।

बल्कि ये सब आती लक्ष्मी की हिलोरों का आनंद लेते हुए मन ही मन खुश हो रहे थे।

आज प्रियंका के ये कहना की पति के बारे में ऐसी बातें सुनकर मन को बहुत कष्ट होता है ,कोई नयी बात नहीं।

उसने तो ये कहना ही था , वो एक बहुत चतुर नारी है और अपने पति की गलतियों पर पर्दा डालना अपना कर्तव्य समझती है।

कोई भी समझदार व्यक्ति बड़ी आसानी से ये अंदाज़ा लगा सकता है कि गरीब दामाद को रातों-रात अरबों रूपये की संपत्ति का मालिक कैसे बना लिया जाएगा ये खाका परिवार के दिमाग़ में पहले से मौजूद होगा।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए यदि विचार करें तो श्रीमती प्रियंका वाड्रा को अपना  ढिठाई पूर्ण व्यवहार कुछ भी गलत नहीं नज़र आता।

बौखला खुद रही हैं लेकिन बता रही है  दूसरों को बौखलाया हुआ चूहा , और अब उनके पास अपने पति और अपने बचाव में एक ढीठ आदमी की तरह विरोधियों के खिलाफ अनाप-शनाप बकवास करने के अलावा और कुछ भी नहीं है।

आवश्यकता ये है कि जनता इन के द्वारा किये दुष्कर्मों को ना भूले और इन्हें चुनाव में भारी हार दे कर सबक सिखाये।

 

Friday, February 28, 2014

हिन्दू क्या करे ?

 पिछले दिनों "विश्व हिन्दू परिषद् " के संस्थापक एवं अग्रणी नेता श्री सिंघल ने एक बयान दिया था , जिसपर खूब बवाल मचा था।
बवाल मचना ही था , क्योंकि बयान हिंदुओं के हित को ध्यान में रखते हुए दिया गया था।
भारत देश में हिन्दू हित कि बात करना बहुत ही खतरनाक और समाज विरोधी बात मानी जाती है।
आप हिन्दू देवी - देवताओं को खूब गाली दीजिये , जी भर कर कोसिये ,मजाल है कोई कुत्ता भी भौंक जाए।
बल्कि  समाज में आप बड़े सम्माननीय और प्रगतिवादी विचारधारा वाले आज कि नयी पीढ़ी के उदारचरित व्यक्ति कहलायेंगे।
चारों तरफ आप कि इज़ज़त होगी , हर सभा में आप को सम्मान से आमंत्रित भी किया जाएगा।
अगर कोई आप के विचारों को पसंद नहीं करता या उनसे घृणा भी करता है तो वो अधिक से अधिक अपने  मन  ही मन में आप को कोस कर रह जाएगा , क्योंकि आज के युग में भारत देश में हिन्दू और हिन्दू धर्म कि वकालत सिर्फ चन्द सिरफिरे ही करते हैं , और सिरफिरों कि बात सुनने कि फुर्सत किसी के पास नहीं।
अभी आज ही हमारा दूध वाला सुबह-सुबह मुझ से पूछ बैठा , " अंकल जी , हमारे अपने भारत देश में हिन्दू कि दुर्दशा का क्या कारण है ? "
सवाल चाहे कितना भी जायज़ क्यों ना हो , लेकिन मेरे लिए जैसे  मेरे  ज़ख्मों पर नमक ही था।
इसलिए मैंने सुबह-सुबह उसे बिना पूरी तरह से जवाब दिए टालना ही बेहतर समझा।
हिन्दू  सनातन काल से उदारवादी रहा है।
लेकिन आज हिन्दू कि जो दुर्दशा है वो उसके उदारवादी होने के कारण कम , समझौता वादी होने के कारण अधिक है।
  " जो सबके साथ होगा , वही  हमारे साथ भी होगा " .
यह सोच हम सब को कमज़ोर बनाये दे रही है।
 देश में  " वोट बैंक  '  कि राजनीति का नंगा खेल चल रहा है।
राजनीतिज्ञ को वोट चाहिए।
वोट बटोरने के लिए राजनीतिज्ञ किसी भी हद तक जा सकते हैं।
हिन्दू हो या मुसलमान , शरीफ आदमी शान्ति से इज़ज़त कि जिंदगी जीना चाहता है।
बदमाश गुंडागर्दी और घटिया हरकतें करके अपनी जिंदगी खुशियों से भरता है।
आज मुस्लिम समाज के सफेदपोश गुंडे सेक्यूलरज़िम के नाम पर खुलेआम मनमानी करते घूम रहे हैं।
एक बात हम  सब के समझने की है ,
धर्म मेरा हो या दुसरे का , इज़ज़त सब कि होनी चाहिए।
ये बात इस देश में सिर्फ और सिर्फ एक ही राजनीतिज्ञ ने समझी है।
गुजरात में आज हिन्दू-मुसलमान दोनों अमन-चैन से अपनी-अपनी ज़िंदगी बड़े सुख और चैन से जी रहे हैं।
हिन्दू हों या मुसलमान दंगे गुंडे--बदमाश ही करते हैं।
 आज गुजरात में किसी बदमाश कि हिम्मत नहीं कि कोई दंगा-फसाद फैला सके।
लेकिन मुसलमान गुजरात में  हिंदुओं के साथ-साथ आज पूरे सुख और चैन से रह रहा है।
क्या ये हालात सारे देश में पैदा करने कि ज़रुरत नहीं है ?
ये हालात वो ही पैदा कर सकता है जो वोट बैंक कि राजनीति कि परवाह किये बिना केवल देश हित में काम करना चाहता हो।
हिंदुओं को एकबार सारे भेदभाव भूल कर अपनी समझौतावादी आदत छोड़कर एक आज़माए हुए राजनीतिज्ञ के हाथ में देश कि बागडोर सौंपनी चाहिए।
वोट उस के हक़ में दो , जो इस देश कि सोचे ,इस देश के बाकी नागरिकों के साथ-साथ हिन्दू कि भी सोचे .
दुर्भाग्य कि बात है कि ऐसे अनुभवी और मंजे हुए महान राजनीतिज्ञ , मोदी जी का भी लोग विरोध कर रहे हैं।
सावधान हो जाओ हिंदुओं।




Sunday, February 16, 2014

मातृ शक्ति कि जय 

आज के हिंदुस्तान टाइम्स में एक खबर छपी है। 

रांची के निकट एक पांच वर्ष कि बालिका के साथ एक 23 वर्षीय  पडोसी युवक ने बलात्कार किया और फिर उसकी चीख -पुकार से डर कर बच्ची को लहूलुहान स्थिति में छोड़कर भाग गया। 
इसी गम्भीर तरह से घायल स्थिति में बच्ची अपने घर पहुंची और सारे कुकर्म के बारे में  रोते-सिसकते हुए अपनी माँ को बताया ,सारे दुष्कर्म कि बात सुनकर माँ तो जैसे गुस्से से पागल ही हो गयी।  माँ ने बच्ची को इलाज के लिए उसके पिता  के हवाले कियाऔर खुद उस पडोसी लड़के कि खोज में निकल पड़ी। 
उस माँ ने अपनी बच्ची के साथ कुकर्म करने वाले नीच लड़के को ढूंढ निकाला और फिर उस  कुकर्मी लड़के को लोहे की छड से मार-मार कर जान से  ही मार डाला और फिर अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया। 
       " उस माँ का कहना था कि मेरे पड़ोस वाले लड़के
         ने मेरी बेटी का बलात्कार किया, इस पर मैंने 
         उसे जान से मार दिया। तो मैंने क्या गलत 
         किया ? "

 अब प्रश्न ये है कि क्या क़ानून अपने हाथ में लेकर उस माँ ने ठीक किया ?
मैं चाहता हूँ कि इस वीर औरत कि कहानी अधिक से अधिक लोग जानें। 
इसे एक और खबर समझ कर दर-किनार ना कर दें। 
आप सब कि राय का मुझे इंतज़ार रहेगा।

Saturday, February 15, 2014

                                                ॐ 
किसको दोष दें ?

पिछले दिनों एक विदेशी लेखक वेन्डी डोनिजेर द्वारा  लिखी एक पुस्तक , " द  हिंदूस : एन आल्टरनेटिव हिस्ट्री " के नाम से पेंगुइन इंडिया ने छापी थी।
पुस्तक में हिंदुओं को और हिन्दू वीरों को बहुत गंदे रूप में प्रस्तुत किया गया था , जिसमें शिवाजी महाराज और रानी लक्ष्मी बाई जैसे व्यक्तित्वों कि भी निंदा कि गई थी। 
इस पुस्तक के बेहूदा विवरणों के कारण हिन्दू समाज में काफी रोष व्याप्त हुआ था। 
यहाँ तक कि एक सजग हिन्दू पाठक आदरणीय   " श्री  दीनानाथ बत्रा  "     ने पेंगुइन इंडिया पर अदालत में हिन्दू धर्म और हिन्दू वीरों के  बारे में अनुचित प्रकरण छापने और हिंदुओं कि भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले को लेकर मुकदमा दाखिल कर दिया। 

काफी खींच - तान के बाद पेंगुइन इंडिया ने अपनी गलती मानी और उन लोगों ने श्री दिन नाथ बत्रा से अदालत के बाहर समझौता करना बेहतर समझा। 

समझौते के तहत पुस्तक बाज़ार से वापिस ले ली गई और सारी  प्रतियों को नष्ट कर  दिया गया। 

एक तरफ पेंगुइन इंडिया और श्री बत्रा अपने इस शुभ कार्य के लिए प्रशंसा के पात्र हैं वहीं दूसरी तरफ हिंदुओं में ही ऐसे गद्दार मौजूद हैं जो पेंगुइन इंडिया के इस अदालत से बाहर किये गए समझौते को पाठकों के अधिकारों का हनन मान रहे हैं और उन्होंने उलटे पेंगुइन इंडिया पर अदालत में मुकदमा कर दिया है कि उनका ये कार्य पाठकों के अधिकारों के विरुद्ध है। 
विरोध करने वालों में हमेशा कि तरह हिन्दू राष्ट्र विरोधी शक्तियां ही आगे हैं। 

सभी हिंदुओं को एकजुट होकर अरुंधति रॉय और उसके साथियों कि हिन्दू विरोधी नीतियों कि निंदा करनी चाहिए।


Saturday, December 14, 2013

ये नए हंगामे बाज

सभी विद्वान् इस बात पर एकमत हैं कि वामपंथियों का मुख्य लख्य किसी ना किसी मुद्दे को लेकर हंगामा खड़ा किये रखना होता है।
जब वामपंथ इस देश में अपनी जड़ें मज़बूती से नहीं जमा सका तो इन्होने आतंक का सहारा लिया और बंगाल में पसर कर पैठ गया।
बहुत कोशिशों के बावज़ूद भी वामपंथी बंगाल और दक्षिण भारत में केरल के सिवाय कहीं कोई काबिले तारीफ़ असर दिखा नहीं सके।
उत्तर भारत में अपार कोशिशों के बावज़ूद वामपंथी कहीं सफल नहीं हो पाये।
उत्तर भारत वामपंथियों को कभी स्वीकार नहीं कर पाया।  
फिर एक नया रूप सामने आया ,  " नक्सलवाद " के  नाम से।
नक्सलवादी कहते हैं कि वो वहाँ के निवासियों कि लड़ाई लड़ रहे हैं , क्योंकि वो इलाके पिछड़े हुए हैं , वहाँ बिजली नहीं है , पीने का पानी नहीं है , पढ़ाई के लिए विद्यालय नहीं हैं और बीमारों के इलाज के लिए हस्पताल नहीं हैं , आने -जाने के रास्ते दुर्गम हैं।
लेकिन बड़े मजे कि बात ये है कि जब इन इलाकों में सड़क बनाने कि कोशिश होती है ,तब हमारे नक्सली भाई सड़क बनाने वालों को मार-पीट कर भगा देते हैं।
 बिजली पहुंचाने का प्रयत्न होता है तो ये भाई बाकायदा बिजली कि तारों को काट देते हैं , बिजली संयंत्रों को तोड़-फोड़ करके सिस्टम नष्ट कर देते हैं।
स्कूल और हसपताल जहां शुरू करने कि कोशिश होती है , उस जगह को बम से उड़ा देते हैं।
नारा ये है कि  " बुर्जुवा  " ताकतों को काम नहीं करने देंगे।
ये सब बहाने हैं।
तुम कहते हो लोग कष्ट में हैं और तुम उनको कष्टों से मुक्ति दिलाना चाहते हो।
 लेकिन अगर वहाँ का जन-जीवन सुधारने का प्रयत्न किया जाता है तो तुम काम करने वाले को ही ख़त्म करने कि कोशिश करते हो।
बात वही है कि  हंगामा खड़ा किये रखना है।  

( ये लेख अधिक लंबा हो रहा है , अतः इसे दो भागों में पब्लिश करना ठीक रहेगा )

Friday, August 9, 2013

 ये टोपी बाज़

हमारे  नेतागण पिछले कई दशकों से  देश की जनता को कोई ना कोई टोपी पहनाते  ही  आ रहे हैं।  जब भी कोई विपदा या चुनाव सर पर होते हैं तब , हर बार कोई ना कोई  नया बहाना बना कर, ये कांग्रेसी नेता जनता को मूर्ख बनाने में कामयाब होते ही रहे हैं।  इस प्रकार देखा जाए तो जनता को नई से नई टोपी पहनाना नेताओं का पेशा है।

 " टोपी पहनाना ", ये मुहावरा किसी को बेवकूफ बनाने के लिए प्रयोग होता है और अपने समाज में अक्सर हम कुछ  अधिक चंट लोगों को सज्जन आदमियों का बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करते देखते हैं यानी ये चंट लोग समाज के सीधे-साधे लोगों को टोपी पहनाते रहते हैं और अपने मन में अपनी होशिआरि पर खुश होते रहते हैं। 

पिछले कई महीनों से काफी सयाने लोग श्री नरेन्द्र मोदी को टोपी पहनाने की कोशिश में लगे हैं , पर वो भाई है , कि किसी को हाथ ही नहीं धरने देता। 

एक बड़े मज़े की बात ये हो रही है कि अगर कहीं किसी गली का कुत्ता भी श्री नरेन्द्र मोदी पर भौंक दे तो सारा मीडिया चिल्लाने लगता है कि अब कुत्ते भी नरेन्द्र मोदी से तंग हैं और उनके ऊपर भौंकने लगे हैं। 

कुछ इससे मिलतीजुलती घटना आज -तब हुई जब म  प्र के मु  म श्री शिवराज सिंह चौहान के मंच से एक छोटे-मोटे रोल अदा करने वाले एक मुस्लिम सम्प्रदाय के अभिनेता रज़ा मुराद ने ईद के मौके पर श्री शिवराज सिंह द्वारा मुस्लिम टोपी पहनने पर ,उनकी खूब तारीफ़ कर डाली और उनकी आड़ में मोदी जी पर व्यंग करते हुए कहा कि टोपी पहन लेने से धर्म नहीं बदल जाता और शेष मु मंत्रियों को भी इनसे शिक्षा लेनी चाहिए। 

रज़ा मुराद ने यहाँ तक कहा कि भीम राव आंबेडकर जी ने इस देश के संविधान में हर व्यक्ति को अपने तरीके से अपना धर्म निभाते हुए जीने का हक़ दिलाया है , ये बात कहते हुए रज़ा मुराद  अपने मुस्लिम भाइयों को ये  कहना भूल गया कि  जैसे टोपी पहनने से धर्म नहीं बदल जाता , वैसे ही  " वन्दे मातरम् " बोलने से ईमान भी खतरे नहीं पड़ जाता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर आप देश के सम्मान से नहीं खेल सकते। 

रज़ा मुराद के बहाने सभी भाई-बहनों को एक बात बताना चाहता हूँ कि गुजरात में इस बार के चुनावों में श्री मोदी की जीत केवल किसी एक जाति ,वर्ग या धर्म के कारण नहीं हुई बल्कि  उन्हें हर वर्ग और हर धर्म  के लोगों का सहयोग प्राप्त हुआ , मज़े की बात ये कि चाहे अहमदाबाद शहर हो या गुजरात का कोई दूसरा मुस्लिम-बहुल क्षेत्र ,सब जगह से कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशियों को हराकर बी जे पी के हिन्दू  प्रत्याशी भारी मतों से जीते। ये सारे मीडिया  और   अपने को सेकूलर कहलाने वाले सब लोगों के मुंह पर एक करारा तमाचा था। 

सब हैरान थे , ये क्या हो गया ? , कैसे हो गया ?

असलियत ये है कि मोदी जी के मु  मन्त्री बनने से पहले गुजरात में किसी ना किसी वज़ह से दंगे भड़कते ही रहते थे। जान और माल दोनों की बहुत भारी  तादाद में नुक्सान की शंका बनी रहती थी , चाहे हिन्दू हों या मुसलमान दोनों का बहुत नुक्सान होता था। 

जब से मोदी जी आये हैं , २००२ के दंगों के बाद गुजरात में अमन चैन है ,लोग खुश हैं और आराम की जिंदगी गुज़ार रहे हैं। क्या हिन्दू क्या मुसलमान सब का व्यापार फल-फूल रहा है। 

लेकिन इन सब बातों के बावजूद ये बिका हुआ मीडिया और कुछ शरारती तत्व केवल देश की जनता को सिर्फ , " टोपी ही पहनाना " चाहते हैं। 

क्योंकि ये जानते हैं कि अगर श्री मोदी जी प्रधान मंत्री बन गए तो दूसरों को टोपी पहनाना तो दूर ये खुद भी टोपी पहनना भूल जायेंगे।

बस करो यार कब तक टोपी पहनाओगे ?