Friday, February 28, 2014

हिन्दू क्या करे ?

 पिछले दिनों "विश्व हिन्दू परिषद् " के संस्थापक एवं अग्रणी नेता श्री सिंघल ने एक बयान दिया था , जिसपर खूब बवाल मचा था।
बवाल मचना ही था , क्योंकि बयान हिंदुओं के हित को ध्यान में रखते हुए दिया गया था।
भारत देश में हिन्दू हित कि बात करना बहुत ही खतरनाक और समाज विरोधी बात मानी जाती है।
आप हिन्दू देवी - देवताओं को खूब गाली दीजिये , जी भर कर कोसिये ,मजाल है कोई कुत्ता भी भौंक जाए।
बल्कि  समाज में आप बड़े सम्माननीय और प्रगतिवादी विचारधारा वाले आज कि नयी पीढ़ी के उदारचरित व्यक्ति कहलायेंगे।
चारों तरफ आप कि इज़ज़त होगी , हर सभा में आप को सम्मान से आमंत्रित भी किया जाएगा।
अगर कोई आप के विचारों को पसंद नहीं करता या उनसे घृणा भी करता है तो वो अधिक से अधिक अपने  मन  ही मन में आप को कोस कर रह जाएगा , क्योंकि आज के युग में भारत देश में हिन्दू और हिन्दू धर्म कि वकालत सिर्फ चन्द सिरफिरे ही करते हैं , और सिरफिरों कि बात सुनने कि फुर्सत किसी के पास नहीं।
अभी आज ही हमारा दूध वाला सुबह-सुबह मुझ से पूछ बैठा , " अंकल जी , हमारे अपने भारत देश में हिन्दू कि दुर्दशा का क्या कारण है ? "
सवाल चाहे कितना भी जायज़ क्यों ना हो , लेकिन मेरे लिए जैसे  मेरे  ज़ख्मों पर नमक ही था।
इसलिए मैंने सुबह-सुबह उसे बिना पूरी तरह से जवाब दिए टालना ही बेहतर समझा।
हिन्दू  सनातन काल से उदारवादी रहा है।
लेकिन आज हिन्दू कि जो दुर्दशा है वो उसके उदारवादी होने के कारण कम , समझौता वादी होने के कारण अधिक है।
  " जो सबके साथ होगा , वही  हमारे साथ भी होगा " .
यह सोच हम सब को कमज़ोर बनाये दे रही है।
 देश में  " वोट बैंक  '  कि राजनीति का नंगा खेल चल रहा है।
राजनीतिज्ञ को वोट चाहिए।
वोट बटोरने के लिए राजनीतिज्ञ किसी भी हद तक जा सकते हैं।
हिन्दू हो या मुसलमान , शरीफ आदमी शान्ति से इज़ज़त कि जिंदगी जीना चाहता है।
बदमाश गुंडागर्दी और घटिया हरकतें करके अपनी जिंदगी खुशियों से भरता है।
आज मुस्लिम समाज के सफेदपोश गुंडे सेक्यूलरज़िम के नाम पर खुलेआम मनमानी करते घूम रहे हैं।
एक बात हम  सब के समझने की है ,
धर्म मेरा हो या दुसरे का , इज़ज़त सब कि होनी चाहिए।
ये बात इस देश में सिर्फ और सिर्फ एक ही राजनीतिज्ञ ने समझी है।
गुजरात में आज हिन्दू-मुसलमान दोनों अमन-चैन से अपनी-अपनी ज़िंदगी बड़े सुख और चैन से जी रहे हैं।
हिन्दू हों या मुसलमान दंगे गुंडे--बदमाश ही करते हैं।
 आज गुजरात में किसी बदमाश कि हिम्मत नहीं कि कोई दंगा-फसाद फैला सके।
लेकिन मुसलमान गुजरात में  हिंदुओं के साथ-साथ आज पूरे सुख और चैन से रह रहा है।
क्या ये हालात सारे देश में पैदा करने कि ज़रुरत नहीं है ?
ये हालात वो ही पैदा कर सकता है जो वोट बैंक कि राजनीति कि परवाह किये बिना केवल देश हित में काम करना चाहता हो।
हिंदुओं को एकबार सारे भेदभाव भूल कर अपनी समझौतावादी आदत छोड़कर एक आज़माए हुए राजनीतिज्ञ के हाथ में देश कि बागडोर सौंपनी चाहिए।
वोट उस के हक़ में दो , जो इस देश कि सोचे ,इस देश के बाकी नागरिकों के साथ-साथ हिन्दू कि भी सोचे .
दुर्भाग्य कि बात है कि ऐसे अनुभवी और मंजे हुए महान राजनीतिज्ञ , मोदी जी का भी लोग विरोध कर रहे हैं।
सावधान हो जाओ हिंदुओं।




Sunday, February 16, 2014

मातृ शक्ति कि जय 

आज के हिंदुस्तान टाइम्स में एक खबर छपी है। 

रांची के निकट एक पांच वर्ष कि बालिका के साथ एक 23 वर्षीय  पडोसी युवक ने बलात्कार किया और फिर उसकी चीख -पुकार से डर कर बच्ची को लहूलुहान स्थिति में छोड़कर भाग गया। 
इसी गम्भीर तरह से घायल स्थिति में बच्ची अपने घर पहुंची और सारे कुकर्म के बारे में  रोते-सिसकते हुए अपनी माँ को बताया ,सारे दुष्कर्म कि बात सुनकर माँ तो जैसे गुस्से से पागल ही हो गयी।  माँ ने बच्ची को इलाज के लिए उसके पिता  के हवाले कियाऔर खुद उस पडोसी लड़के कि खोज में निकल पड़ी। 
उस माँ ने अपनी बच्ची के साथ कुकर्म करने वाले नीच लड़के को ढूंढ निकाला और फिर उस  कुकर्मी लड़के को लोहे की छड से मार-मार कर जान से  ही मार डाला और फिर अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया। 
       " उस माँ का कहना था कि मेरे पड़ोस वाले लड़के
         ने मेरी बेटी का बलात्कार किया, इस पर मैंने 
         उसे जान से मार दिया। तो मैंने क्या गलत 
         किया ? "

 अब प्रश्न ये है कि क्या क़ानून अपने हाथ में लेकर उस माँ ने ठीक किया ?
मैं चाहता हूँ कि इस वीर औरत कि कहानी अधिक से अधिक लोग जानें। 
इसे एक और खबर समझ कर दर-किनार ना कर दें। 
आप सब कि राय का मुझे इंतज़ार रहेगा।

Saturday, February 15, 2014

                                                ॐ 
किसको दोष दें ?

पिछले दिनों एक विदेशी लेखक वेन्डी डोनिजेर द्वारा  लिखी एक पुस्तक , " द  हिंदूस : एन आल्टरनेटिव हिस्ट्री " के नाम से पेंगुइन इंडिया ने छापी थी।
पुस्तक में हिंदुओं को और हिन्दू वीरों को बहुत गंदे रूप में प्रस्तुत किया गया था , जिसमें शिवाजी महाराज और रानी लक्ष्मी बाई जैसे व्यक्तित्वों कि भी निंदा कि गई थी। 
इस पुस्तक के बेहूदा विवरणों के कारण हिन्दू समाज में काफी रोष व्याप्त हुआ था। 
यहाँ तक कि एक सजग हिन्दू पाठक आदरणीय   " श्री  दीनानाथ बत्रा  "     ने पेंगुइन इंडिया पर अदालत में हिन्दू धर्म और हिन्दू वीरों के  बारे में अनुचित प्रकरण छापने और हिंदुओं कि भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले को लेकर मुकदमा दाखिल कर दिया। 

काफी खींच - तान के बाद पेंगुइन इंडिया ने अपनी गलती मानी और उन लोगों ने श्री दिन नाथ बत्रा से अदालत के बाहर समझौता करना बेहतर समझा। 

समझौते के तहत पुस्तक बाज़ार से वापिस ले ली गई और सारी  प्रतियों को नष्ट कर  दिया गया। 

एक तरफ पेंगुइन इंडिया और श्री बत्रा अपने इस शुभ कार्य के लिए प्रशंसा के पात्र हैं वहीं दूसरी तरफ हिंदुओं में ही ऐसे गद्दार मौजूद हैं जो पेंगुइन इंडिया के इस अदालत से बाहर किये गए समझौते को पाठकों के अधिकारों का हनन मान रहे हैं और उन्होंने उलटे पेंगुइन इंडिया पर अदालत में मुकदमा कर दिया है कि उनका ये कार्य पाठकों के अधिकारों के विरुद्ध है। 
विरोध करने वालों में हमेशा कि तरह हिन्दू राष्ट्र विरोधी शक्तियां ही आगे हैं। 

सभी हिंदुओं को एकजुट होकर अरुंधति रॉय और उसके साथियों कि हिन्दू विरोधी नीतियों कि निंदा करनी चाहिए।