Monday, November 12, 2012

शरणार्थी

शरणार्थी 

कल 13 नवम्बर दिन मंगलवार को ज्योतिपर्व दीपावली है। 
" दीपावली की आप सब को बहुत-बहुत बधाई "
आज प्रातःकाल मेरे एक मित्र ने मुझे फोन पर दीपावली की बधाई दी, साथ ही उसने मुझे एक विशेष दीपावली मिलन के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण भी दिया।

मित्र क्योंकि एक ज़िम्मेदार और गम्भीर व्यक्ति हैं,अतः उनके निमंत्रण की गरिमा को समझते हुए मैंने समयानुसार दोपहर 12 बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना स्वीकार कर लिया। कार्यक्रम पश्चिमी दिल्ली के भरथल गाँव में स्थित 'दादा मोटा मंदिर' में होना था। सूचनार्थ बता दूं कि भरथल गाँव बिजवासन के बिलकुल निकट ही है।

कार्यक्रम में पहुँच कर जो कुछ भी देखा, सुना और समझा वो किसी भी भारतीय के लिए बहुत दुखदायी है।

मंदिर के प्रांगण में हवन की बहुत सुन्दर व्यवस्था थी ,हवन कुण्ड के एक ओर मंच बनाया गया था जिसके पास गाँव के कुछ लोग बैठे थे और हवन कुण्ड के दूसरी ओर तकरीबन डेढ़ सौ स्त्री-पुरुष हर उम्र के बच्चों के साथ बैठे थे।बच्चे हर फिक्र से दूर आपस में खेलते हुए आनन्द मग्न थे।

मेरे मित्र महोदय इन्तजाम की देखरेख में लगे थे,मुझे पहुंचा देख बहुत खुश हुए और उन्होंने मुझे पूरे कार्यक्रम की पूरी जानकारी दी।उन्होंने मुझे सब लोगों से मिलवाया भी।

परिचय की प्रक्रिया धीरे-धीरे एक भयावह परिस्थिति की जानकारी का रूप लेने लगी।हवन कुण्ड के दूसरी ओर बैठे डेढ़ सौ स्त्री-पुरुष  पाकिस्तान से भाग कर आये हुए हिन्दू शरणार्थी थे।उनके चेहरों पर लिखी बेचारगी उनकी सारी व्यथा बयान कर रही थी।

यह हवन इन्हीं किस्मत के मारों के लिए आयोजित किया गया था।

ठीक एक बजे हवन शुरू किया गया।हवन का मुख्य जिजमान भी इन्हीं शरणार्थी भाईओं में से एक दम्पत्ति को बनाया गया था।

जब वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ हवन प्रारम्भ हुआ तो उन सब के 
चेहरे  खुशियों से चमक उठे।दो-चार बुजुर्गों को छोड़ कर बाकी सब के लिए वैदिक मन्त्रोच्चार और हवन आदि का कार्यक्रम एकदम एक नयी चीज़ थी,जिसके बारे में वो सब जानते तो थे परन्तु कभी इस तरह खुल कर ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाए थे।वहाँ पकिस्तान में उन्हें हवन आदि करने की तो बात ही छोडो,दिवाली-होली जैसे त्यौहार तक मनाने की आज्ञा नहीं है।

हिन्दु वहाँ बहुत डर कर सहमे हुए रहते हैं।हिन्दू औरतें गली-मोहल्ले में या बाज़ार में अकेली नहीं जा सकतीं,उनकी लड़कियों को स्कूल-कालेज में दाखिला नहीं मिल सकता,उन लोगों को खेतों में किये काम की मेहनत  मजदूरी तक पूरी नहीं मिलती फिर भी वह लोग बंधुआ मजदूरों की तरह काम करने को मजबूर हैं वरना उनकी बहु-बेटिओं को घर से उठा लिए जाने का डर बना रहता है।यानी हिन्दू वहाँ दुसरे दर्जे के नागरिक बन कर रह गए हैं।सरकार और पुलिस से भी उन्हें वहाँ कोई सुरक्षा की उम्मीद नहीं रह गयी।

जब पाकिस्तान बना था तब वहाँ हिन्दुओं की संक्षा कोई साढे सैंतीस लाख थी जो आज घट कर सिर्फ और सिर्फ दो लाख और सैंतीस हज़ार रह गई है।उन के साथ होने वाली ज्यादतियों की ओर से वहाँ की सरकार जानबूझ कर मुंह मोडे रहती है।

नतीजा यह है कि आधे से ज़्यादा हिन्दू अपनी बहु-बेटियों की इज्ज़त बचाने के लिए अपना धर्म बदल कर मजबूरन मुसलमान बन कर वहाँ रह रहे हैं।जो बचे हैं वो पालायन करने को मजबूर हैं।

और शर्मनाक बात यह है कि हमारी सरकार इन सब हक़ीक़तों को अच्छी तरह से जानती है लेकिन उसमें इतना भी दम नहीं कि वोह इन बातों के खिलाफ कहीं भी कोई आवाज़ उठा सके । 
कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि जब किसी तरह अपनी इज्ज़त बचाने के लिए यह लोग पिछले साल किसी तरह दिल्ली पहुँचने में कामयाब हो गए तो हमारी सरकार ने इन पर रहम दिखाने की बजाय इन के साथ मुजरिमों जैसा व्यवहार किया।यहाँ की सरकार ने पाकिस्तान की सरकार को खुश करने के लिए इन लोगों को तुरंत यहाँ से निष्कासित करने की आज्ञा जारी कर दी।

ना जाने कैसे इनकी बदहाली की खबर दैनिक जागरण अखबार वालों को लग गयी।दैनिक जागरण ने इनकी दुर्गति की पूरी कहानी अपने अखबार में छापी।दैनिक जागरण की रिपोर्ट के बावजूद ना तो किसी अखबार ने और ना ही टी वी के किसी भी चैनल ने इस बारे में कुछ कहा।

खैर दैनिक जागरण की रिपोर्ट ने सच में हिन्दुओं को झकझोरा और बहुत से भारतीय हिन्दू भाई मजबूरी में शरणार्थी बने अपने पाकिस्तानी हिन्दू भाईओं की मदद के लिए खड़े हो गए।

किसी ने बहुत सही कहा है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी जब प्रभु किसी की मदद करना चाहते  हैं तो किसी ना किसी को मददगार बना कर खडा कर देते हैं।

इनके साथ भी ऐसा ही हुआ,काफी संगठन और उनके प्रतिनिधियों ने इनकी हर प्रकार से मदद करने की कोशिशें की।

जिन सब लोगों ने इनकी मदद की उन सब के नाम और उन्होंने इन दुखी भाईओं की कैसे-कैसे मदद की अगर यह सब विस्तार से लिखने बैठ गया तो लेख बहुत लम्बा हो जाएगा इसलिए बाकी सब हिम्मती और निस्वार्थ सेवा करने वाले भाईओं का ज़िक्र आगे के लेख के लिए छोड़ते हुए आज केवल यही बताना चाहूँगा कि भरथल गाँव के श्री नाहर सिंह जी इन सब डेढ़ सौ हिन्दू भाई-बहनों को अपने साथ अपने गाँव के अपने घर में ले आये  और पूरे एक वर्ष से अपने घर में पूरे सम्मान के साथ रखे हुए हैं।ऐसे निस्वार्थ सेवाव्रती को मेरा शत-शत नमन।
उत्तरप्रदेश के छोटे से कसबे होडल के युवा अध्यापक श्री जय प्रकाश जी भी श्री नाहर सिंह जी के साथ जुड़ गए और उन्होंने घर-घर जाकर 80 क्विंटल राशन इकट्ठा किया।

यही नहीं इन लोगों ने इन दुखियारे लोगों की लड़ाई भारत के सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचाई।


सुप्रीमकोर्ट से राहत ये मिली कि यदि कोई इन सब शरणार्थियों को गोद लेने को तैयार हो तो उसकी ज़िम्मेदारी पर इन सब को भारत में रहने की इजाज़त दे दी जाए।

श्री नाहर सिंह और श्री जय प्रकाश और उनके कुछ साथियों ने मिलकर इस  बारे में सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और अब ये लोग भरथल गाँव में रह रहे हैं।इन में से कुछ लोग फरीदाबाद भी शिफ्ट हो गए हैं क्योंकि सुना  है कि एक और जत्था पाकिस्तान से यहाँ आने वाला है।

इन भाईओं के जवान लोग फल और सब्जी बेच कर अपना गुज़ारा कर रहे हैं।आगे-आगे धीरे-धीरे ये लोग तरक्की कर सकेंगे,ऐसी मुझे उम्मीद है।

हमारी सरकार हिन्दुओं के बारे में इतनी उदासीन क्यों है?

क्या यही भारत का सिक्युलारिज्म है कि नाजायज़ तरीके से बंगलादेश से घुस आये नौ लाख मुसलमान हमारे सर आँखों पर और पाकिस्तान से आये पीड़ित हिन्दुओं को लात ?

सोचने का विषय है।