Tuesday, January 17, 2012

भ्रष्टाचार और उसकी सुविधायें

भ्रष्टाचार और उसकी सुविधायें 


आज के समय में भ्रष्टाचार के विरुद्ध बातें करना , ड्राइंग-रूम में बैठ कर इस बारे में लम्बी-लम्बी बहस करना आम फैशन हो गया है .
पहले स्वामी रामदेव जी और फिर उनकी बनाई ज़मीन पर अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो आन्दोलन चलाया उसने देश के जन -मानस पर बहुत बड़ा असर डाला है .
आज का युग क्योंकि भ्रष्टाचार पर बातें करते हुए टाइम पास करने का युग है ,तो मुझे भी इस बारे में एक काफी पुरानी बात याद आ रही है जो मैं सब के साथ शेयर करना चाहूंगा .   
जिन दिनों का ज़िक्र करने जा रहा हूँ उन दिनों हम लोग जनक पुरी में रहा करते थे .
जैसे फैमिली डॉक्टर होता है , जिसके पास घर के सब छोटे बड़े हर बिमारी के इलाज के लिए भागते हैं ,वैसे ही लोग अपना नाई,धोबी और ओप्टीशियन  भी एक फिक्स रखते हैं .
हमारे परिवार के सभी सदस्यों के चश्में भी उन दिनों एक ही  ओपटीशियन  से बनवाये जाते  थे . अब क्योंकि ईश्वर की कृपा से घर में चश्मा लगाने वाले  सदस्यों की संख्या भी ठीक-ठाक ही थी  , तो किसी ना किसी के चश्में के चक्कर में महीने-पंद्रह दिन में  ओपटीशियन महोदय के पास जाना ही पड़ता था .
हमारे जो ओपटीशियन महोदय थे  उनका पुत्र जिसका नाम राकेश था बड़ी मेहनत करके या यूं  कहो कि काफी तिकड़म भिडाने के बाद अमेरिका में रहने के लिए ग्रीन कार्ड हासिल करने में कामयाब हो गया था  . 
एक बार जब मैं अपने पिता जी का चश्मा  बनवाने उनकी दुकान पर गया तो बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी मिठाई का डिब्बा उन्होंने मेरे सामने कर दिया . ख़ुशी की वज़ह पूछने पर उन्होंने बड़े लम्बे-चौड़े अन्दाज़ में मुझे सारा सिलसिला समझाने की कोशिश की . जो कुछ उन्होंने मुझे समझाया उसका निचोड़ ये था कि  :-
   -- उनका काबिल बेटा अमेरिका में सेटल होने जा रहा था , क्योंकि ,
   -- हिन्दोस्तान एक निहायत ही घटिया , गन्दा और चोर-उचक्के रिश्वत-खोरों का देश था जहां लोग पिछले जन्मों का फल भुगतने के लिए पैदा होते थे .
  -- इसलिए ये समझदार , ईमानदार और मेहनती लोगों के लिए किसी नरक से कम नहीं था .
  -- लिहाजा हर समझदार , ईमानदार और मेहनती आदमी को यहाँ अपनी जिंदगी बर्बाद करने कि बजाय विदेश में जाकर अपनी किस्मत सवांरने की कोशिश करनी चाहिए .
खैर , बिना उनकी बातों का कोई प्रतिवाद किये , मैंने एक लड्डू लिया और अपने रस्ते लगा .
पिछले दो साल  से चश्में वगैरह  के काम के लिए मेरा बेटा ही जाता रहा था, मेरा जाना हो ही नहीं पाया था , अभी कुछ महीने  पहले की बात है कि मैं किसी काम से उस तरफ गया हुआ था .अचानक हमारे ओपटीशियन महोदय , जो अपनी दूकान के बाहर ही खड़े थे , मुझे देख कर पुकार उठे , ''वाह भाई साहब ,आज तो बहुत दिन बाद चक्कर लगा ,आइये , तशरीफ़ लाइए .''
और मुझे मजबूरन उनके पीछे-पीछे तशरीफ़ हाथ में लेकर उनकी दुकान में 
 जाना पडा .
दुकान में घुसते ही सबसे पहले मेरी नज़र उनके सुपुत्र राकेश पर पड़ी .राकेश को वहाँ देखकर मैंने समझा कि शायद अपने माता-पिता व अपने दूसरे रिश्तेदारों से मिलने के लिए कुछ दिनों के लिए अमेरिका से इधर आया होगा . 
फिर भी सरसरी तौर पर मैंने पूछ ही लिया , '' कहो भाई राकेश , कैसे हो और तुम्हारे अमेरिका के क्या हाल-चाल हैं ? ''
'' सब ठीक ही है अंकल जी , वैसे मैं अब यहीं पापा के साथ ही काम कर रहा हूँ  ''.
मैं बहुत हैरान हुआ और मैंने उत्सुकता-वश पूछ लिया , '' ये यहाँ कैसे , ये तो अमेरिका में इतनी मुश्किल से ग्रीन कार्ड हासिल कर पाया था और ग्रीन कार्ड लेकर वहीं बसने  वाला था ?''
 '' ओ मिटटी पाओ जी अमरीका ते , नाल उनांदे ग्रीन कार्ड ते , ऐ हुन ऐत्थे  ही रहेगा .''  ओपटीशियन महोदय अचानक झुंजला से गए . 
 '' लेकिन हुआ क्या , जो इसे धरती का स्वर्ग अमेरिका छोड़ कर यहाँ नरक में वापिस आना पडा ?'' मैंने हँसते हुए पूछा .
'' ओ छड्डो भाई साहब , ओ वी कोई मुल्क है , ज़रा-ज़रा जई गल ते बन्दे नू चुक के अन्दर कर देंदे ने , न किसे दा कोई लिहाज ना कोई रियायत , ज़रा गलती होई ताँ मुसीबत ही मुसीबत '' .   
'' हाँ ये बात तो है , अमेरिका और योरप के मुल्कों में कानून बड़े सख्त हैं और उनकी पाबंदी भी बड़ी सख्ती से की जाती है '' .मैंने अपना ज्ञान बघारते हुए कहा .
'' ओ भाई साहब , क़ानून ते इत्थे साडे देश विच वी हैगा पर इत्थे साडे देश विच बन्दे-बन्दे विच फर्क रखने दी सब नू तमीज है , इक्को लाठी नाल हर किसे नू नईं हांकन लगदे ''. 
'' क्या मतलब ? मैं कुछ समझा नहीं '' .
'' मतलब साफ़ है जी , इत्थे बन्दे कोलों कोई उंच-नीच हो वी जावे ताँ कुछ दे-दवा के बच ते जांदा है , उत्थे ते कोई लिहाज ही नहीं . कोई हत्थ ही नहीं रक्खन देंदा ''. 
'' पर ये तो गलत बात है , अगर किसी ने अपराध किया है और वो पैसे दे कर साफ़ बच जाता है तो यह तो भ्रष्टाचार हुआ जो समाज और देश के लिए बहुत हानिकारक है ''. मैंने अपनी आपत्ति जताई .
'' ओ की गल्ल  करदे हो भाई साहब , इत्थे साडे देश विच इक्को ए ही ताँ मौज है भाँवे कतल वी कर दयो , जे त्वाडे पल्ले चार पैसे हैगे ने ताँ त्वानू फिकर करने दी कोई लोड़ नईं , पैसे खवाओ तो साफ़ बरी हो जाओ ''.  वो बड़े शायराना अंदाज़ में बोले .
अब मेरे से और सुनना मुश्किल था इसलिए मैंने जल्दी से उन्हें नमस्कार किया और कोई ज़रूरी काम याद आ गया जतला कर वहाँ से रुखसत हुआ .  
     मैं आज सोचता हूँ कि ये ओपटीशियन महोदय वाली मानसिकता जो आज हम सभी के दिमाग में कहीं ना कहीं कम या ज़्यादा गहरी  बैठी हुई है , क्या हमें भ्रष्टाचार के दलदल से कभी उबरने भी देगी ?








   











     

1 comment:

  1. aapne ye blog padhaa,iske liye aapkaa dhanyawaad .
    aap ko blog kaisaa lagaa . apne vichaar yaheen comments waale section mein awashya likhein .
    kripya is blog ko join bhi karein aur followers par click karke saathi bhi banein .dhanyawaad .

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