Sunday, January 29, 2012

तोता-मैना की कहानी

तोता - मैना की कहानी 


   एक दिन एक विद्वान व्यक्ति एक जंगल के रास्ते से होकर अपने किसी काम से जा रहा था , चलते-चलते थकावट के कारण वह व्यक्ति एक घने वृक्ष की छांह में आराम करने के लिए बैठ गया .अचानक उसे पेड़ की एक डाल पर बैठे आपस में बातें करते तोता-मैना  की एक जोड़ी दिखाई दी .दोनों आपस में जो बातें कर रहे थे उन्हें सुन कर वह व्यक्ति  बड़ी सोच में पड़ गया .असल में वह विद्वान् व्यक्ति पक्षियों की भाषा समझता था .
  तोता-मैना की जिन  बातों को सुनकर  वह विद्वान  व्यक्ति सोच में पड़ गया था वह आप भी सुनिए और फैसला करिए की उस विद्वान का चिंता में पड़ जाना कितना सही था .
  ( तोता-मैना की बातें उनके वार्तालाप के ही रूप में प्रस्तुत हैं .)  
 मैना - क्या बात है तोते राजा , बड़े उदास नज़र आ रहे हो ?
 तोता - असल में मैं बहुत दुखी हूँ , आस्ट्रेलिया में हमारी टीम आखरी मैच  
            भी हार  गई .  
 मैना - इसमें दुखी होने की क्या बात है , कई बार सिरीज़ के सारे मैच जीते 
             भी तो हैं .
  तोता -हाँ लेकिन इस बार की हार दिग्गज खिलाड़ियों की लापरवाही  की 
            वजह से हुई है , जो बहुत गलत बात है .
   मैना -ऐसा क्यों ?
   तोता -बताते हैं कि कुछ सीनियर खिलाड़ी कैप्टन का कहना नहीं मानते   
            और जान-बूझकर उसकी सलाह के विरुद्ध जाते हैं . इस                                   
           अनुशासनहीनता का पूरी टीम के खेल प्रदर्शन पर बुरा प्रभाव पड़ता 
           है .
  मैना -तुम्हारा मतलब यह हुआ कि टीम में नेतृत्व संकट है .
  तोता -हाँ यही लगता है , हालांकि वर्तमान कैप्टेन में कोई कमी नहीं
            नज़र आती , बस सिनिअर खिलाड़ियों कि अकड़ और ईगो के 
            कारण सारी परेशानी पैदा हो रही है .
  मैना -तो क्या हल सोचा ?
  तोता -शायद कैप्टेन बदलेंगे 
  मैना -उससे क्या होगा , थोड़े दिन के बाद उसके खिलाफ भी बगावत शुरू  
           हो  जायेगी . ये कोई पक्का इन्तजाम नहीं है टीम में अनुशासन
           बनाए रखने का .
  तोता -तो तू क्या कहती है , क्या करना चाहिए पक्का अनुशासन कायम 
            रखने के लिए ?
 मैना -मैं तो कहती हूँ राहुल गांधी को कैप्टेन बना देना चाहिए .सब ठीक हो 
          जाएगा .
 तोता -क्या बकवास करती है , क्रिकेट का राहुल गांधी से क्या सम्बन्ध .
           कहाँ राम-राम , कहाँ टें-टें . वो तो लोगों की देखा-देखी कभी-कभी 
           बस मैच देखने पहुँच जाता है .
  मैना -अरे तो उसे राजनीति की कौनसी समझ है , पर देख लो सारे के सारे 
          केबिनेट मिनिस्टर तक जो एक इमानदार और काबिल प्रधान मंत्री             
          की रत्ती भर भी परवाह नहीं करते और खुलेआम अनुशासनहीनता 
          का प्रदर्शन करते फिरते हैं कैसे राहुल गांधी के एक इशारे पर सीधे 
          हो जाते हैं .
 तोता -पर वो बिचारा भी कब तक संभालेगा , जब वो बड़ा हो जाएगा तब 
           कौन संभालेगा ?
  मैना -तू उसकी चिंता छोड़ दे .जब तक राहुल बड़ा होगा तब तक उसका 
         बेटा खडा हो जाएगा . रौब उसका भी उतना ही रहेगा आखिर वो भी तो 
         उसी खानदान का रोशन-चिराग होगा .


   तोता -  तेरी बात बिलकुल सही है , यही है पक्का और इकलौता इन्तजाम                                                                 
              मैं अभी शरद पंवारजी  के पास जाता हूँ और उन्हें तेरी सलाह से        
              सहमत कराता हूँ .
                          और तोता उड़ गया - विद्वान के भी तोते उड़ा गया 
           
            

Tuesday, January 17, 2012

भ्रष्टाचार और उसकी सुविधायें

भ्रष्टाचार और उसकी सुविधायें 


आज के समय में भ्रष्टाचार के विरुद्ध बातें करना , ड्राइंग-रूम में बैठ कर इस बारे में लम्बी-लम्बी बहस करना आम फैशन हो गया है .
पहले स्वामी रामदेव जी और फिर उनकी बनाई ज़मीन पर अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो आन्दोलन चलाया उसने देश के जन -मानस पर बहुत बड़ा असर डाला है .
आज का युग क्योंकि भ्रष्टाचार पर बातें करते हुए टाइम पास करने का युग है ,तो मुझे भी इस बारे में एक काफी पुरानी बात याद आ रही है जो मैं सब के साथ शेयर करना चाहूंगा .   
जिन दिनों का ज़िक्र करने जा रहा हूँ उन दिनों हम लोग जनक पुरी में रहा करते थे .
जैसे फैमिली डॉक्टर होता है , जिसके पास घर के सब छोटे बड़े हर बिमारी के इलाज के लिए भागते हैं ,वैसे ही लोग अपना नाई,धोबी और ओप्टीशियन  भी एक फिक्स रखते हैं .
हमारे परिवार के सभी सदस्यों के चश्में भी उन दिनों एक ही  ओपटीशियन  से बनवाये जाते  थे . अब क्योंकि ईश्वर की कृपा से घर में चश्मा लगाने वाले  सदस्यों की संख्या भी ठीक-ठाक ही थी  , तो किसी ना किसी के चश्में के चक्कर में महीने-पंद्रह दिन में  ओपटीशियन महोदय के पास जाना ही पड़ता था .
हमारे जो ओपटीशियन महोदय थे  उनका पुत्र जिसका नाम राकेश था बड़ी मेहनत करके या यूं  कहो कि काफी तिकड़म भिडाने के बाद अमेरिका में रहने के लिए ग्रीन कार्ड हासिल करने में कामयाब हो गया था  . 
एक बार जब मैं अपने पिता जी का चश्मा  बनवाने उनकी दुकान पर गया तो बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी मिठाई का डिब्बा उन्होंने मेरे सामने कर दिया . ख़ुशी की वज़ह पूछने पर उन्होंने बड़े लम्बे-चौड़े अन्दाज़ में मुझे सारा सिलसिला समझाने की कोशिश की . जो कुछ उन्होंने मुझे समझाया उसका निचोड़ ये था कि  :-
   -- उनका काबिल बेटा अमेरिका में सेटल होने जा रहा था , क्योंकि ,
   -- हिन्दोस्तान एक निहायत ही घटिया , गन्दा और चोर-उचक्के रिश्वत-खोरों का देश था जहां लोग पिछले जन्मों का फल भुगतने के लिए पैदा होते थे .
  -- इसलिए ये समझदार , ईमानदार और मेहनती लोगों के लिए किसी नरक से कम नहीं था .
  -- लिहाजा हर समझदार , ईमानदार और मेहनती आदमी को यहाँ अपनी जिंदगी बर्बाद करने कि बजाय विदेश में जाकर अपनी किस्मत सवांरने की कोशिश करनी चाहिए .
खैर , बिना उनकी बातों का कोई प्रतिवाद किये , मैंने एक लड्डू लिया और अपने रस्ते लगा .
पिछले दो साल  से चश्में वगैरह  के काम के लिए मेरा बेटा ही जाता रहा था, मेरा जाना हो ही नहीं पाया था , अभी कुछ महीने  पहले की बात है कि मैं किसी काम से उस तरफ गया हुआ था .अचानक हमारे ओपटीशियन महोदय , जो अपनी दूकान के बाहर ही खड़े थे , मुझे देख कर पुकार उठे , ''वाह भाई साहब ,आज तो बहुत दिन बाद चक्कर लगा ,आइये , तशरीफ़ लाइए .''
और मुझे मजबूरन उनके पीछे-पीछे तशरीफ़ हाथ में लेकर उनकी दुकान में 
 जाना पडा .
दुकान में घुसते ही सबसे पहले मेरी नज़र उनके सुपुत्र राकेश पर पड़ी .राकेश को वहाँ देखकर मैंने समझा कि शायद अपने माता-पिता व अपने दूसरे रिश्तेदारों से मिलने के लिए कुछ दिनों के लिए अमेरिका से इधर आया होगा . 
फिर भी सरसरी तौर पर मैंने पूछ ही लिया , '' कहो भाई राकेश , कैसे हो और तुम्हारे अमेरिका के क्या हाल-चाल हैं ? ''
'' सब ठीक ही है अंकल जी , वैसे मैं अब यहीं पापा के साथ ही काम कर रहा हूँ  ''.
मैं बहुत हैरान हुआ और मैंने उत्सुकता-वश पूछ लिया , '' ये यहाँ कैसे , ये तो अमेरिका में इतनी मुश्किल से ग्रीन कार्ड हासिल कर पाया था और ग्रीन कार्ड लेकर वहीं बसने  वाला था ?''
 '' ओ मिटटी पाओ जी अमरीका ते , नाल उनांदे ग्रीन कार्ड ते , ऐ हुन ऐत्थे  ही रहेगा .''  ओपटीशियन महोदय अचानक झुंजला से गए . 
 '' लेकिन हुआ क्या , जो इसे धरती का स्वर्ग अमेरिका छोड़ कर यहाँ नरक में वापिस आना पडा ?'' मैंने हँसते हुए पूछा .
'' ओ छड्डो भाई साहब , ओ वी कोई मुल्क है , ज़रा-ज़रा जई गल ते बन्दे नू चुक के अन्दर कर देंदे ने , न किसे दा कोई लिहाज ना कोई रियायत , ज़रा गलती होई ताँ मुसीबत ही मुसीबत '' .   
'' हाँ ये बात तो है , अमेरिका और योरप के मुल्कों में कानून बड़े सख्त हैं और उनकी पाबंदी भी बड़ी सख्ती से की जाती है '' .मैंने अपना ज्ञान बघारते हुए कहा .
'' ओ भाई साहब , क़ानून ते इत्थे साडे देश विच वी हैगा पर इत्थे साडे देश विच बन्दे-बन्दे विच फर्क रखने दी सब नू तमीज है , इक्को लाठी नाल हर किसे नू नईं हांकन लगदे ''. 
'' क्या मतलब ? मैं कुछ समझा नहीं '' .
'' मतलब साफ़ है जी , इत्थे बन्दे कोलों कोई उंच-नीच हो वी जावे ताँ कुछ दे-दवा के बच ते जांदा है , उत्थे ते कोई लिहाज ही नहीं . कोई हत्थ ही नहीं रक्खन देंदा ''. 
'' पर ये तो गलत बात है , अगर किसी ने अपराध किया है और वो पैसे दे कर साफ़ बच जाता है तो यह तो भ्रष्टाचार हुआ जो समाज और देश के लिए बहुत हानिकारक है ''. मैंने अपनी आपत्ति जताई .
'' ओ की गल्ल  करदे हो भाई साहब , इत्थे साडे देश विच इक्को ए ही ताँ मौज है भाँवे कतल वी कर दयो , जे त्वाडे पल्ले चार पैसे हैगे ने ताँ त्वानू फिकर करने दी कोई लोड़ नईं , पैसे खवाओ तो साफ़ बरी हो जाओ ''.  वो बड़े शायराना अंदाज़ में बोले .
अब मेरे से और सुनना मुश्किल था इसलिए मैंने जल्दी से उन्हें नमस्कार किया और कोई ज़रूरी काम याद आ गया जतला कर वहाँ से रुखसत हुआ .  
     मैं आज सोचता हूँ कि ये ओपटीशियन महोदय वाली मानसिकता जो आज हम सभी के दिमाग में कहीं ना कहीं कम या ज़्यादा गहरी  बैठी हुई है , क्या हमें भ्रष्टाचार के दलदल से कभी उबरने भी देगी ?








   











     

Sunday, January 15, 2012

मकर सक्रान्ति

मकर सक्रान्ति 
    
   आप सब को मकर सक्रान्ति कि बहुत-बहुत बधाई हो .
   जब सूर्य  का मकर राशि के साथ संक्रमण होता है तो मकर सक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है .
    पर्व क्यों मनाया जाता है ?
   क्योंकि सूर्य जब  मकर राशि में प्रवेश करता है तो वह पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध से निकल कर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के निकट आना शुरू कर देता है और क्योंकि पृथ्वी का सारा जन-जीवन सूर्य पर निर्भर करता है इसलिए उसका उत्तरी गोलार्ध के निकट आना अधिक शुभ माना जाता है इसीलिए हम इस घटना का स्वागत एक पर्व कि तरह मनाते हुए करते हैं .
    इस घटना को हम उत्तरायण के नाम से भी जानते हैं .  
   बोलचाल की भाषा में कहें तो जिस दिन  सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है  उस दिन मकर सक्रान्ति होती है .
    वैसे तो सभी जानते हैं कि सूर्य अपने स्थान पर स्थिर है और हमारे ब्रह्माण्ड के सारे गृह-नक्षत्र उसके चारों ओर निरन्तर घूमते रहते हैं . 
   परन्तु अपनी सुविधा के लिए हम उल्टा बोलते हैं .
   हम कहते हैं कि सूर्य इस राशि में या सूर्य उस गृह में आ गया है .
   कुल बारह राशियाँ मानी गयी हैं ,और सूर्य बारी-बारी से प्रत्येक राशि में एक महीना रहता है .
   इस प्रकार एक वर्ष में हमारे ब्रह्माण्ड की एक परिक्रमा या एक चक्कर पूरा होता है .
   यानी ठीक एक वर्ष बाद बाकी की सारी राशियों का चक्कर लगाकर सूर्य वापिस मकर राशि में आ जाता है .  
  ये आम आदमी की आम सोच है और इसी आम सोच की वज़ह से हम सब अपने दिमाग में यह बात जमाये बैठे हैं कि मकर सक्रान्ति या यों कहें कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हर वर्ष 14 जनवरी को होता है .
   इसमें आम आदमी का कोई दोष भी नहीं है ,क्योंकि सन 1936 से लेकर सन 2008 तक मकर सक्रान्ति 14 जनवरी को ही पड़ रही थी .
   जब 72 साल तक हम मकर सक्रान्ति का पर्व 14 जनवरी को मनाते रहे हैं तो अचानक  कैसे मान लें कि अब यह पर्व 14 जनवरी को नहीं ,बल्कि 15 जनवरी को मनाना चाहिए .
   इसके लिए हमें खगोल शास्त्र कि जानकारी लेनी पड़ेगी .
    मैं ज्यादा गहराई में ना जाकर केवल मकर राशि का सूर्य के चारों ओर घूमने का जो समय है , उसी की बात करूंगा .
    मकर राशि का एक चक्कर ठीक एक वर्ष में पूरा नहीं हो पाता , बल्कि ये चक्कर एक वर्ष से बीस मिनट अधिक में पूरा होता है .
    यानि 72 वर्ष बीतते-बीतते इस  चक्कर में 1440 मिनट या 24 घन्टे और जुड़ जाते हैं और इस प्रकार 72 वर्ष बाद मकर सक्रान्ति एक दिन आगे बढ़ जाती है .यही कारण है कि जो मकर सक्रान्ति का पर्व सन 1936 से लेकर सन 2008 तक हर वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता था वह अब 15 जनवरी को ही मनाया जाना चाहिए क्योंकि अब सूर्य का मकर राशि में संक्रमण 14 जनवरी को नहीं 15 जनवरी को होता है .
    ( समय का ये हेर-फेर क्यों होता है अगर मैं यह समझाने  बैठ गया तो मामला कुछ ज़्यादा ही लम्बा हो जाएगा और हम असली विषय से भटक जायेंगे .)
      मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि हमें लकीर का फ़कीर नहीं बने रहना चाहिए और इस पर्व को जोकि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है , अंधविश्वास में नहीं बदल देना चाहिए , बल्कि इसकी महान वैज्ञानिकता को समझते हुए मनाना चाहिए .
      इस प्रकार सन 2o80 तक मकर सक्रान्ति का पर्व 15 जनवरी को मनाकर फिर 2080से सन 2152  तक यह पर्व 15 जनवरी की जगह 16 जनवरी को ही मनाया जाएगा .
       मेरा पूरा विशवास है कि सब इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझते हुए आने वाले सालों में अपने जीवन काल में इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे .
      अगर पढ़ कर अच्छा लगा हो तो सबको बताएं और मुझे अपने अमूल्य विचारों से भी अवगत करायें .
       धन्यवाद .