श्री दारा सिंह मेरे जवानी के हीरो
मैं और मेरे जैसे अन्य ,हज़ारों क्या ,लाखों नवयुवक 60-70 के दशक में श्री दारा सिंह के अनन्य दीवाने हुआ करते थे .
आज प्रातःकाल उनके निधन का दुखद समाचार टी . वी .से मिला .वास्तव में बहुत दुःख हुआ .वैसे तो पिछले कुछ दिनों से उनका स्वास्थ्य गिरने लगा था , परन्तु 7 जौलाई को जो वो हस्पताल गए तो जीवन में पहली बार लड़ाई हार कर लौटे . ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे .
मुझे बचपन से अखाड़े में जाकर व्यायाम करने का और सबको कुश्ती लड़ते देखने का बहुत शौक था .
मैं खुद कुश्ती लड़ने से हमेशा कतराता था . केवल कुश्ती देखने भर के लिए दूर-दूर मित्रों के साथ कहीं भी पहुँच जाता था .कभी महरोली और कभी जामामस्जिद दंगल के उमंग भरे माहौल का आनंद लेने के लिए हम लोग सब अखाड़ों के चक्कर लगाया करते थे .
दारासिंह जी उन दिनों हर छोटे-बड़े देशवासी के दिल की धड़कन होते थे .
फिल्मों में मुमताज़ के साथ उनकी जोड़ी खूब जमती थी .निशि के साथ भी उनकी फिल्में बहुत बढ़िया बनी थीं .
लोग उनके नाम से फिल्में देखने जाते थे ,क्योंकि उनकी फिल्मों में एक से एक कुश्ती के नज़ारे देखने को मिलते थे .उनकी मशहूरी और लोकप्रियता को देखते हुए बहुत से पहेलवान फिल्म इंडस्ट्री में खिंचे हुए आ गए थे ,लेकिन उनकी जैसी बुलंदियों को कोई भी न छू सका .
उन दिनों ग्रीको-रोमन स्टाइल की कुश्तिओं की बड़ी धूम थी .अखबारों में दारा सिंह जी के विदेशी पहलवानों
के साथ कुश्तियों के चर्चे बहुत छपते थे . और हम लोग उनकी जीत के चर्चे बहुत चाव से पढ़ा और सुना करते थे .
दारा सिंह जी को घमंड तो छू भी नहीं गया था ,लोग उनके पास कुश्तियों में रेफरी बनने की प्रार्थना लेकर पहुँच जाते और वो बिना कोई नखरा दिखाए हर स्थान पर आने को राज़ी हो जाते .
सुबह उनके देहान्त की खबर सुनकर एक बहुत पुरानी बात याद आ गई , लिखना वही चाहता था लेकिन और सब बातें भी लिखने बैठ गया .
60 के दशक की बात है .
भारत केसरी खिताब का फाइनल दंगल था .खिताबी दंगल बड़ा नामी था और आल-इंडिया लेवल का था .
कुश्ती मास्टर चन्दगी राम और उस समय के मशहूर पहलवान श्री मेहरुद्दीन के बीच होनी थी .
चन्दगीराम जी श्री मेहरुद्दीन के मुकाबले एकदम नए पहेलवान थे .असल में वो स्कूल में ड्राइंग के टीचर थे .
कोई भी श्री चन्दगी राम जी को महत्त्व नहीं दे रहा था .
हर कोई समझ रहा था कि श्री मेहरुद्दीन श्री चन्दगीराम को मिनटों में चित्त कर देंगे .लेकिन कुश्ती क्योंकि भारत केसरी खिताब के फाइनल की थी ,इसलिए कुश्ती के शौकीन दूर -दूर से दिल्ली के दिल्ली गेट स्टेडियम में इकट्ठे हो रहे थे .
इन सब बातों से ऊपर इस कुश्ती के रेफरी श्री दारा सिंह जी रहने वाले थे.
कुश्ती के साथ-साथ दारा सिंह जी को देखने की इच्छा सब के मन में बहुत प्रबल थी .
चारों तरफ यह खबर आग की तरह फ़ैल चुकि थी कि इस कुश्ती में श्री दारा सिंह जी रेफरी रहने वाले हैं .
मुझे याद है दिल्ली गेट स्टेडियम के बाहर इतनी ज़्यादा भीड़ इक्कट्ठा हो गई थी कि भीड़ को काबू में रखने के लिए पुलिस के घुड़सवार दस्ते को बुलवाया गया था .फिर भी भीड़ थी कि उमड़ी ही पड़ रही थी .
अचानक भीड़ में एक बहुत बड़ी हलचल होने लगी .
सब तरफ दारासिंह जी का नाम गूंजने लगा .दारा सिंह जी आ गए थे .
भीड़ बेकाबू होने लगी
पुलिस को दारा सिंह जी को स्टेडियम के दरवाज़े तक पहुंचाने में बड़ी मुश्किल हो रही थी .
पुलिस की मुश्किल को भांप कर , दारा सिंह जी , जो स्टेडियम की दीवार के पास भीड़ में फंसे हुए खड़े थे ,एकाएक एक स्टंट मैन की तरह कूदे और एक छलांग में ही स्टेडियम की 8 फ़ुट ऊंची दीवार के ऊपरी सिरे को अपने दोनों हाथों से थाम कर एक जिमनास्ट की तरह अपने बदन को ऊपर उठा कर दिवार पर जा चढ़े .
यह सब इतनी तेज़ी से हुआ कि पुलिस वाले भी दंग रह गए .
अचानक दारा सिंह जी को दिवार पर खड़े हुए भीड़ की तरफ मुस्कुराते हुए हाथ हिलाते देखकर पूरी भीड़ में हर्ष की लहर दौड़ गई .
अचानक दारा सिंह जी घूमे और स्टेडियम के अन्दर कूद गए .
दारा सिंह जी का यह एक्शन पूरी भीड़ को आत्मविभोर कर गया .
बाद में जिस खूबसूरती से कुश्ती में दारा सिंह जी ने रेफरी की भूमिका निभाई ,कुश्ती प्रेमिओं को उनकी वह भूमिका सदा याद रहेगी .
मास्टर चन्दगी राम जी ने जिस खूबी और आसानी से श्री मेहरुद्दीन को पटकी दी थी वह भी एक यादगार ही रहेगी .
मैं कभी भी किसी एक्टर या नेता से प्रभावित नहीं हुआ हूँ , लेकिन दारा सिंह जी बचपन से ही मेरे हीरो रहे हैं और हमेशा रहेंगे .
यह देश इतने अच्छे इंसान की कमी हमेशा महसूस करता रहेगा .
आप क्या सोचते हैं ? अपने अमूल्य विचारों से अवगत अवश्य कराएं।धन्यवाद।