Sunday, January 15, 2012

मकर सक्रान्ति

मकर सक्रान्ति 
    
   आप सब को मकर सक्रान्ति कि बहुत-बहुत बधाई हो .
   जब सूर्य  का मकर राशि के साथ संक्रमण होता है तो मकर सक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है .
    पर्व क्यों मनाया जाता है ?
   क्योंकि सूर्य जब  मकर राशि में प्रवेश करता है तो वह पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध से निकल कर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के निकट आना शुरू कर देता है और क्योंकि पृथ्वी का सारा जन-जीवन सूर्य पर निर्भर करता है इसलिए उसका उत्तरी गोलार्ध के निकट आना अधिक शुभ माना जाता है इसीलिए हम इस घटना का स्वागत एक पर्व कि तरह मनाते हुए करते हैं .
    इस घटना को हम उत्तरायण के नाम से भी जानते हैं .  
   बोलचाल की भाषा में कहें तो जिस दिन  सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है  उस दिन मकर सक्रान्ति होती है .
    वैसे तो सभी जानते हैं कि सूर्य अपने स्थान पर स्थिर है और हमारे ब्रह्माण्ड के सारे गृह-नक्षत्र उसके चारों ओर निरन्तर घूमते रहते हैं . 
   परन्तु अपनी सुविधा के लिए हम उल्टा बोलते हैं .
   हम कहते हैं कि सूर्य इस राशि में या सूर्य उस गृह में आ गया है .
   कुल बारह राशियाँ मानी गयी हैं ,और सूर्य बारी-बारी से प्रत्येक राशि में एक महीना रहता है .
   इस प्रकार एक वर्ष में हमारे ब्रह्माण्ड की एक परिक्रमा या एक चक्कर पूरा होता है .
   यानी ठीक एक वर्ष बाद बाकी की सारी राशियों का चक्कर लगाकर सूर्य वापिस मकर राशि में आ जाता है .  
  ये आम आदमी की आम सोच है और इसी आम सोच की वज़ह से हम सब अपने दिमाग में यह बात जमाये बैठे हैं कि मकर सक्रान्ति या यों कहें कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हर वर्ष 14 जनवरी को होता है .
   इसमें आम आदमी का कोई दोष भी नहीं है ,क्योंकि सन 1936 से लेकर सन 2008 तक मकर सक्रान्ति 14 जनवरी को ही पड़ रही थी .
   जब 72 साल तक हम मकर सक्रान्ति का पर्व 14 जनवरी को मनाते रहे हैं तो अचानक  कैसे मान लें कि अब यह पर्व 14 जनवरी को नहीं ,बल्कि 15 जनवरी को मनाना चाहिए .
   इसके लिए हमें खगोल शास्त्र कि जानकारी लेनी पड़ेगी .
    मैं ज्यादा गहराई में ना जाकर केवल मकर राशि का सूर्य के चारों ओर घूमने का जो समय है , उसी की बात करूंगा .
    मकर राशि का एक चक्कर ठीक एक वर्ष में पूरा नहीं हो पाता , बल्कि ये चक्कर एक वर्ष से बीस मिनट अधिक में पूरा होता है .
    यानि 72 वर्ष बीतते-बीतते इस  चक्कर में 1440 मिनट या 24 घन्टे और जुड़ जाते हैं और इस प्रकार 72 वर्ष बाद मकर सक्रान्ति एक दिन आगे बढ़ जाती है .यही कारण है कि जो मकर सक्रान्ति का पर्व सन 1936 से लेकर सन 2008 तक हर वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता था वह अब 15 जनवरी को ही मनाया जाना चाहिए क्योंकि अब सूर्य का मकर राशि में संक्रमण 14 जनवरी को नहीं 15 जनवरी को होता है .
    ( समय का ये हेर-फेर क्यों होता है अगर मैं यह समझाने  बैठ गया तो मामला कुछ ज़्यादा ही लम्बा हो जाएगा और हम असली विषय से भटक जायेंगे .)
      मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि हमें लकीर का फ़कीर नहीं बने रहना चाहिए और इस पर्व को जोकि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है , अंधविश्वास में नहीं बदल देना चाहिए , बल्कि इसकी महान वैज्ञानिकता को समझते हुए मनाना चाहिए .
      इस प्रकार सन 2o80 तक मकर सक्रान्ति का पर्व 15 जनवरी को मनाकर फिर 2080से सन 2152  तक यह पर्व 15 जनवरी की जगह 16 जनवरी को ही मनाया जाएगा .
       मेरा पूरा विशवास है कि सब इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझते हुए आने वाले सालों में अपने जीवन काल में इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे .
      अगर पढ़ कर अच्छा लगा हो तो सबको बताएं और मुझे अपने अमूल्य विचारों से भी अवगत करायें .
       धन्यवाद .
    
  

1 comment:

  1. वाह! मुझे यह पढ़कर बहुत आनंद आया और ज्ञान कि प्राप्ति पर प्रसन्नता भी हुई!
    आशा है कि इस लेख को पढने वाले सभी इस ज्ञान को बांटेंगे और आने वाले वर्षों में इसे स्पष्टता से याद रखेंगे!

    आश्चर्यजनक और अद्भुत जानकारी है कि अबसे लेकर २०८० तक मकर संक्रांति कि तिथि १५ जनवरी हो जाएगी!
    धन्यवाद मामाजी!

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