Saturday, December 14, 2013

ये नए हंगामे बाज

सभी विद्वान् इस बात पर एकमत हैं कि वामपंथियों का मुख्य लख्य किसी ना किसी मुद्दे को लेकर हंगामा खड़ा किये रखना होता है।
जब वामपंथ इस देश में अपनी जड़ें मज़बूती से नहीं जमा सका तो इन्होने आतंक का सहारा लिया और बंगाल में पसर कर पैठ गया।
बहुत कोशिशों के बावज़ूद भी वामपंथी बंगाल और दक्षिण भारत में केरल के सिवाय कहीं कोई काबिले तारीफ़ असर दिखा नहीं सके।
उत्तर भारत में अपार कोशिशों के बावज़ूद वामपंथी कहीं सफल नहीं हो पाये।
उत्तर भारत वामपंथियों को कभी स्वीकार नहीं कर पाया।  
फिर एक नया रूप सामने आया ,  " नक्सलवाद " के  नाम से।
नक्सलवादी कहते हैं कि वो वहाँ के निवासियों कि लड़ाई लड़ रहे हैं , क्योंकि वो इलाके पिछड़े हुए हैं , वहाँ बिजली नहीं है , पीने का पानी नहीं है , पढ़ाई के लिए विद्यालय नहीं हैं और बीमारों के इलाज के लिए हस्पताल नहीं हैं , आने -जाने के रास्ते दुर्गम हैं।
लेकिन बड़े मजे कि बात ये है कि जब इन इलाकों में सड़क बनाने कि कोशिश होती है ,तब हमारे नक्सली भाई सड़क बनाने वालों को मार-पीट कर भगा देते हैं।
 बिजली पहुंचाने का प्रयत्न होता है तो ये भाई बाकायदा बिजली कि तारों को काट देते हैं , बिजली संयंत्रों को तोड़-फोड़ करके सिस्टम नष्ट कर देते हैं।
स्कूल और हसपताल जहां शुरू करने कि कोशिश होती है , उस जगह को बम से उड़ा देते हैं।
नारा ये है कि  " बुर्जुवा  " ताकतों को काम नहीं करने देंगे।
ये सब बहाने हैं।
तुम कहते हो लोग कष्ट में हैं और तुम उनको कष्टों से मुक्ति दिलाना चाहते हो।
 लेकिन अगर वहाँ का जन-जीवन सुधारने का प्रयत्न किया जाता है तो तुम काम करने वाले को ही ख़त्म करने कि कोशिश करते हो।
बात वही है कि  हंगामा खड़ा किये रखना है।  

( ये लेख अधिक लंबा हो रहा है , अतः इसे दो भागों में पब्लिश करना ठीक रहेगा )

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